________________
गुरुदेव श्री ग्ल मुनि स्मृति-अन्य
"भायणकपाए सुकुमालिया अणसण पब्वज्नति । बहुविण-खीणा सा मोहंगता । तेहिं णाय कालगय ति । ताहे तं एगो गेहति, वितिमओ उपकरण गैण्हति । ततो सा पुरिस-फासेण रातो य सीयल-बातेण णिज्जति,
अप्पातिता सचेयणा जाया।"
निशीथ वृणि में लोक-कथाएँ बहुत है। उन कथाओं के बीच-बीच में पद्य भी आने है, जो बहुत मरल और मधुर होते हैं, भाषा की दृष्टि में देखिए
"णागा जलवासीया, सुणेह तस - यावरा ।
सरडा जत्य मडन्ति, अभावो परियतई ॥" निशीथ-णि मे सबाद, आलाप और वार्तालाप के भी अनेक प्रमग आते है। मवादो की शैली वहुन रोचक होती है । ऐमा प्रतीत होता है, जैसे हम कोई एकाकी अथवा नाटक पढ रहे हो ? मवाद बहुन हो नजीब और गेवक है । देखिए, एक मवाद
fण गतासि भिक्खाए ! अन्न ! खमणं मे। कि निमित्त मोह-तिगिच्छं करेमि।
अहं पि करेमि।" कहीं-कहीं निशीथ चूणि मे तत्त्व-चर्चाएं आती है, जिनमे धर्म और दर्शन के गूढ-तत्त्वो को आचार्य ने अपनी शैली से मुबोध्य बना दिया है। संस्कृति और समाज के अनेक मुन्दर चित्रण उपलब्ध होने है। इतिहास की विपुल सामग्नी इममे है । वस्तुत. निणीय चणि एक महामागर है। इसमें बताया गया है, कि राजा मम्प्रति का राज्य शासन चन्द्रगुप्त, विन्दुसार और अशोक-तीनो से अच्छा था । सम्प्रति राजा का जैनधर्म पर अत्यन्त अनुराग था। वह जैन श्रमणों का परम भक्त था। उमने अनेक राज्यो मे यह व्यवस्था की थी, कि वहाँ पर साधुओ को किसी प्रकार का कप्ट न होने पाए । आचार्य कालक की कथा यहाँ पर बडे विस्तार के साथ दी है । राजा चण्ड प्रद्योत की कथा दी है, इसमे यह भी बताया गया है, कि पुष्कर तीर्थ की उत्पत्ति कैमे हुई ? अन्य बहुत मी कथाों का इममे उल्लेख किया गया है।
लोक-प्रकृति का चित्रण करते हुए बताया है कि मालवा और सिन्धु देश के लोग अप्रिय-भाषी होते हैं। महाराष्ट्र के लोग अधिक वाचाल होते हैं। अन्य बहुत मे देशो को रौनि का वर्णन किया गया है। विभिन्न देशो का वर्णन है।
श्रमण शब्द की व्याख्या करते हुए कहा गया है, कि श्रमण पाँच प्रकार के होते है--निग्रन्थ, गाय, तापस, गैरिक और आजीवक । निर्गन्य का अर्थ है-जैन श्रमण । आजीवक का अर्थ है--