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व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन
मलयगिरि ने ओघ की नियुक्ति पर वृत्ति की रचना की है । ओघ का विषय है, साधु जीवन की समाचारी। सयम का परिपालन कैसे करना चाहिए। असयम से सयम की रक्षा कैसे की जाए।
निशीथ-चूणि
चूणियो मे सबसे बडी चूर्णियां दो है-आवश्यक-णि-और निशीथ-चूणि । अत इन्हे विशेष चणि कहा जाता है। निशीथ की चूणि आवश्यक चूणि से भी अधिक विस्तृत है, क्योकि यह मूल पर, नियुक्ति पर और भाष्य पर, तीनो पर है। निशीथ नियुक्ति पर, निशीथ भाष्य पर जो प्राकृत गद्य में ख्याख्या है, उसका नाम विशेप चूणि है । चूर्णिकार स्वय कहता है
"पुवायरिय - कय चिय अह पि
त चेव उ विसेसा।"
जिस प्रकार जिनभद्र क्षमाश्रमण का भाष्य आवश्यक की विशेप बातो का विवरण करता है, अत वह विशेषावश्यक भाष्य कहा जाता है, उसी प्रकार निशीथ-भाष्य की विशेष बातो का विवरण करने वाली चूणि को भी विशेष चूर्णि कहा जाता है। इसका अर्थ यह है, कि इसके पूर्व भी इस पर अन्य विवरण अथवा वृत्ति लिखी जा चुकी है।
चूर्णि को प्राकृत की गद्य व्याख्या कहने का अभिप्राय इतना ही है, कि इस मे प्राकृत अधिक और संस्कृत अल्प है। निशीथ चूणि की भाषा बहुत मधुर, सुबोध्य और सरल है। इसकी शैली बहुत सुन्दर है। भावो की अभिव्यक्ति मे चूर्णिकार बहुत ही सिद्धहस्त है। गम्भीर विषय को भी वह सरल भापा मे अभिव्यक्त कर जाता है। निशीथ चूणि स्वय अपने आप मे एक विशाल-काय स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसा ही प्रतीत होता है। क्योकि इसमे सभी विषयो की व्याख्या विस्तार से देने का प्रयत्न किया है।
___ यह बात असदिग्ध है, कि जिनदास महत्तर ही इस चूणि के प्रणेता है । आचार्य ने स्वय इसमे अपना, अपने परिवार का और जन्म भूमि का भी उल्लेख किया है। इससे सिद्ध होता है, कि निशीथ चूणि की रचना आचार्य जिनदास महत्तर ने की है।
निशीथ चूणि मे बडे विस्तार के साथ मे साधु जीवन के आचार का वर्णन किया गया है। उत्सर्ग और अपवाद का तो इसमे बहुत ही अधिक विस्तार किया है। यह विषय जितना गम्भीर है, आचार्य ने उसे उतने ही अधिक विस्तार से उठाया है और बडी गम्भीरता के साथ उसे पूरा भी किया है। उत्सर्ग
और अपवाद की परिभाषा देकर, किस प्रसग पर अपवाद का सेवन किया जाता है, यह भी बताया है। निशीथ चूणि की प्राकृत भापा कितनी प्राञ्जल, कितनी ओजपूर्ण, कितनी मधुर और कितनी स्पष्ट है, उसका एक नमूना यह है -