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व्याख्या साहित्य एक परिशीलन
इन चूर्णियो मे धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज और इतिहास की विपुल सामग्री उपलब्ध होती है । इनके अध्ययन से जैन आचार्यों के व्यापक ज्ञान का पता लगता है। प्रावश्यक-चूणि
अन्य चूणियो की भाति इसमे केवल शब्दो के अर्थ का ही कथन नही है। विपय और विवेचन की दृष्टि से यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ ही बन गया है। इसमे विविध विपयो का विस्तार से उपन्यास किया है । भाषा इसकी प्राञ्जल है।
- इसमे पाँच ज्ञानो का विवेचन है। गणधरो का सम्बाद है। ऋषभदेव के जन्म से लेकर निर्वाण तक की घटनाओ का वर्णन क्रम-बद्ध है । कलाओ का कथन है। शिल्प-शास्त्र के तत्वो का प्रतिपादन है। पाँच प्रकार के शिल्प-कारो का उल्लेख है । पाँच शिल्पकार है-कुम्भकार, चित्रकार, वस्त्रकार, कर्मकार और काश्यप । अग्नि के आविष्कार का उल्लेख है।
इसमे यह भी कथन है, कि ऋपभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लेखनकला की, सुन्दरी को गणित की और अपने पुत्र भरत को चित्रकला और राजनीति की शिक्षा दी। भरत की दिग्विजय और उसके राज्याभिषेक का विस्तार के साथ मे वर्णन किया गया है।
महावीर के जन्म और जन्मोत्सव का रोचक वर्णन है । महावीर को दीक्षा, साधना, उपसर्ग और कैवल्य आदि का वर्णन किया गया है। पार्श्व-परम्परा के अनेक सन्तो का परिचय दिया है।
मखलिपुत्र गोशालक महावीर को नालन्दा मे मिला। महावीर ने लाढ, वनभूमि और शुभ्र भूमि मे जो उपसर्ग सहन किए थे, उनका उल्लेख है । यह वर्णन वहुत ही द्रावक है। प्रसंग-वश जमालि, आर्यरक्षित, तिष्यगुप्त, वन स्वामी और वनसेन आदि का वर्णन किया गया है, जो इतिहास की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है । दशपुर, दशार्ण भद्र और मथुरा का भी उल्लेख है।
चेलना के अपहरण की घटना है । कोणिक और सेचनक हाथी की उत्पत्ति कथा दी है। कोणिक का चेटक के साथ युद्ध हुआ था। मगध की प्रसिद्ध गणिका मागधी का और कोणिक ने उसकी कैसे सहायता ली?
राजा श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार के जीवन की अनेक घटनाओ का वर्णन भी इसमे मिलता है। उसकी बौद्धिक सूझ को अनेक कथाओ का उल्लेख है । कोणिक के पुत्र उदायी ने पाटलिपुत्र कैसे बसाया' इसका वर्णन है।
यथाप्रसग नन्द राजा का वर्णन, शकटाल और वररुचि की घटना, स्थूलभद्र का ससार त्याग कर दीक्षा ग्रहण करना और कोशा को प्रतिबोध करना आदि का वर्णन इतिहास की दृष्टि से उपयोगी है।
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