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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
विशेपावश्यक-माप्य पर अनेक समर्थ आचार्यों ने टीका की है, परन्तु उन मे तीन टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं
. स्वय ग्रन्थकार की स्वोपज्ञवृत्ति २ कोटयाचार्य की विस्तृत टीका ३ आचार्य मलधारी हेमचन्द्र कृत विशाल टीका
आगम ग्रन्थो मे ही नहीं, समग्र जैन तत्व-ज्ञान के ग्रन्थो मे इस भाग्य का अपना एक विशिष्ट स्थान रहा है, और भविष्य में भी रहेगा । यह भाप्य, वस्तुत महाभाप्य है । आगमो के रहस्य को समझने के लिए इसका अध्ययन परम आवश्यक है। आगम-गत तत्ववाद का इसमे बहुत ही स्पष्ट वर्णन किया गया है।
चूणि-परिचय
नियुक्ति और भाष्य की भांति चूणि भी आगमो की व्याख्या है। परन्तु यह पद्य मे न होकर गद्य मे होती है। केवल प्राकृत मे न होकर प्राकृत और सस्कृत दोनो मे होती है। चूर्णियो की भापा सरल और सुवोध्य होती है ।
चूणियो का रचना समय लगभग सातवी-आठवी शती है। चूर्णिकारो मे जिनदास महत्तर का नाम विशेष उल्लेखनीय है । इनका समय विक्रम की सातवी पाती माना जाता है। इन्होने बहुत से आगमो पर चूणियां लिखी है। परन्तु इनकी निशीथ चूणि तो बडे विस्तार में हैं। चूर्णिकारो मे सिद्धसेन सूरि, प्रलम्ब सूरि और अगस्त्यसिंह सूरि का नाम भी उल्लेखनीय है। निशीथ और आवश्यक की चूणि को विशेप चूणि कहा गया है।
प्रसिद्ध और उपलब्ध चूर्णियां इस प्रकार हैं -
१. आवश्यक २ आचाराग ३. सूत्रकृताग ४. दशवकालिक ५ उत्तराध्ययन ६. नन्दी ७ अनुयोगद्वार ८ व्याख्या-प्रज्ञप्ति ६. जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति
१० जीवाभिगम ११. निशीथ १२ महानिशीथ १३. वृहत्कल्प १४ व्यवहार १५ दशाश्रुत स्कन्ध १६ जीतकल्प १७ पञ्चकल्प १८. ओघ