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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-प्रन्थ उत्तराध्ययन-भाष्य इसको गणना भी मूल सूत्र मे है । इस पर शान्ति सूरि ने प्राकृत मे एक विस्तृत टीका लिखी है। इस पर एक लघु भाप्य भी लिखा गया है, जिसकी गाथाएँ इसकी नियुक्ति मे मिश्रित हो गई है। इसमे बोटिक की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है । पाँच प्रकार के निम्रन्थो का स्वरूप बताया गया है । पांच भेद इस प्रकार से है-पुलाक, बकुश, कुशील, निम्रन्थ और स्नातक । प्रसङ्गवश अन्य भी वर्णन किया गया है, जो बहुत सुन्दर है। उत्तराध्ययन सूत्र पर सस्कृत मे बहुत सी टीकाएँ लिखी गई है । इन टीकाओ मे कुछ विस्तृत है. और कुछ सक्षिप्त है। प्रावश्यक-भाष्य आवश्यक सूत्र मे जैन साधना का बड़ा ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस पर तीन भाप्य लिखे गए है लघु-भाप्य महाभाष्य विशेषावश्यक-भाष्य इसमे वताया गया है, कि कालिक श्रुत मे चरण करणानुयोग का वर्णन है। ऋषि-भाषित मे धर्म कथानुयोग का वर्णन है । दृष्टिवाद मे द्रव्यानुयोग का वर्णन किया है। निन्हवी का और करकण्डू आदि प्रत्येक बुद्धो के जीवन का विस्तार के साथ कथन किया गया है । अस्वाध्याय का वर्णन भी संक्षेप में किया है । अश्वमित्र के सम्बन्ध मे कहा गया है, कि वह अनुप्रवाद के नैपूणिक वस्तु मे पारगत था । अन्य बहुत-से विषयो का इसमे वर्णन है। विशेषावश्यक-भाष्य आवश्यक-सूत्र पर यह एक विस्तृत, विशाल और बृहत्काय महाभाप्य है । जैन ज्ञान का यह एक महाकोष है । आगमो पर जितने भी अन्य भाष्य है, उन सब मे यह विशाल भाष्य है । आगमो मे बिखरे तत्व ज्ञान को इसमे एकत्रित, सुसगत और तर्क-शैली मे प्रस्तुत किया है । जैन तत्व ज्ञान की परिभाषाओ को स्थिर किया है। इसकी रचना के उत्तर काल में जितने भी आगम के व्याख्याकार आचार्य हुए है, उन सबने अपनी व्याख्या का आधार इसी महाभाष्य को बनाया है । आगम मे कोई ऐसा तत्व नही है, जिसकी आचार्य ने इसमे विस्तार से व्याख्या अथवा चर्चा न की हो । आचार की चर्चा इसमे भले ही सक्षेप मे हो, परन्तु विचार की चर्चा तो विस्तार के साथ मे की है। विशेषावश्यक-भाष्य का प्रत्येक प्रकरण और प्रत्येक अध्याय अपने आप मे एक-एक स्वतन्त्र ग्रन्थ ही है । ज्ञानवाद मे पांच ज्ञानो की विचारणा इतने विस्तार से की है, कि वाद के आचार्यों ने अपने अन्यो ७२
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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