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व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन
पिण्ड-नियुक्ति-भाष्य
इस भाष्य मे ४६ गाथाएं है। यह भाष्य पिण्ड नियुक्ति पर लिखा गया है। पिण्ड नियुक्ति की मूल सूत्रो मे परिगणना की गई है। इसमे साधु जीवन के आचार और विचार के सम्बन्ध मे वर्णन किया गया है । विशेष करके इसमे साधुओ के दान लेने की विधि पर प्रकाश डाला गया है । यद्यपि भाप्य का परिमाण बहुत लघु है, फिर भी उनमे यथाप्रसङ्ग अन्य बातो का उल्लेख भी उपलब्ध होता है ।
इसमे पाटलिपुत्र के राजा चन्द्रगुप्त और उसके महामन्त्री चाणक्य का उल्लेख है । पाटलिपुत्र में जो भयकर दुर्भिक्ष पडा था, उसका भी उल्लेख है । आचार्य सुस्थित और उसके शिप्यो के सम्बन्ध मे भी वर्णन मिलता है । इस सम्बन्ध मे एक कथानक भी दिया गया है ।
प्रोष-नियुक्ति-भाष्य
पिण्ड नियुक्ति की भांति ओघ नियुक्ति मे भी साधु जीवन के आचार-विचार का वर्णन किया गया है । इसमे ३२२ गाथाएं है। इस पर आचार्य द्रोण ने वृत्ति लिखी है। साधु के आचार के अतिरिक्त इसमे प्रसङ्गवश अन्य वर्णन भी आ जाते है।
किसी किसी देश में वहां के लोग प्रात काल साधुओ के दर्शन को अपशकुन मानते थे । साधुओ का अनेक प्रकार से परिहास किया जाता था। इसमे कलिंग देश के काञ्चनपुर नगर मे जो भयकर बाढ आयी थी, उसका भी उल्लेख है । सास्कृतिक दृष्टि से ओघ नियुक्ति भाष्य वडा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। मालवा देश के सम्बन्ध मे उल्लेख आया है, कि वहाँ के लोग साघुलो को बहुत पीडा देते थे। अत भाष्याकर उनसे सतर्क रहने का सकेत करते है । इसमे शुभ और अशुभ तिथियो पर भी विचार किया गया है।
दशवकालिक भाष्य
दशवकालिक-सूत्र की गणना मूल सूत्रो मे है । इस पर भी एक छोटा सा भाष्य है, जिसमे कुल ६३ गाथाएँ है । इस पर आचार्य हरिभद्र की एक टीका है।
इसमे मूल गुण और उत्तर गुणो का कथन है। प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाणो की चर्चा है । जीव की सिदि अनेक प्रमाण और तर्क से की है । यह भी बताया है, कि वैदिक और बौद्ध, जीव का क्या स्वरूप मानते हैं।
इसमे साधु के आचार और विचार । भी वर्णन है। प्रसगवश बीच-बीच मे अन्य बातो का भी ल्लेख किया गया है । छोटा होते हुए भी यहभाष्य बडे महत्त्व का है।