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________________ व्याख्या साहित्य एक परिशीलन साधक के जीवन में यदि किसी प्रकार का राग और द्वेप नहीं है, तो वह साधक एक निर्दोप साधक है । सदोप साधक के लिए प्रायश्चित्त का विधान किया गया है । पतन का अवसर आने पर साधक कैसा सकल्प करे। कहा गया है, कि अपने चिरसचित रात को किसी भी प्रकार भग न होने दे। क्योकि स्वीकृत व्रत उसके जीवन का धन है। रात्रि-भोजन मे क्या दोप है। इसके लिए कहा गया है, कि रात्रि में भोजन करने से मक्खी, मच्छर, बिच्छू, चीटी, पुष्प, बीज और विप आदि भोजन मे मिश्रित हो सकते है । साधु और साध्वियो का परस्पर सपर्क न, करने के सम्बन्ध मे निशीथ-भाष्य मे अत्यन्त कठोर नियमो का विधान किया है। कुलटा नारियो से सावधान करने को कहा है। विभिन्न देशो की विभिन्न भाषाओ और वेप-भूपा का वर्णन भी बीच-बीच मे यथा-प्रसग आता है। विभिन्न देशो के विभिन्न लोगो के स्वभाव का वर्णन मनोवैज्ञानिक पद्धति से किया गया है। बडे-बड़े सार्थवाहो का वर्णन बडा ही रोचक किया गया है। मार्ग मे उन्हे कैसी-कैसी बाधाओ का सामना करना पडता था। कागणी और दीनार आदि प्राचीन सिक्को का उल्लेख है । खाने और पीने की बहुत-सी चीजो का उल्लेख है, जो आज के युग मे उपलब्ध नहीं है । तोसली नगर मे तालोदक और राजगृह के तापोदक कुण्ड का भी उल्लेख मिलता है । सिद्धसेन और गोविन्द वाचक का उल्लेख है । अन्य बहुत-से नगरो का, वहाँ की रीति-नीतियो का वर्णन है। उस युग की लोक-कथाओ का, लोक परम्पराओ का और लोक-संस्कृतियो का सजीव वर्णन निशीथ भाष्य में उपलब्ध होता है। समाज-शास्त्र के नियम, अर्थ-शास्त्र के सिद्धान्त और राजनीति के भेदो का वर्णन भी उपलब्ध होता है। निशीथ भाष्य का सम्पादन पूज्य गुरुदेव उपाध्याय अमर मुनि जी महाराज ने किया है, और सन्मति ज्ञानपीठ ने चार बडे भागो मे उसका प्रकाशन करके महान् साहित्य-सेवा की है। जीतकल्प-भाष्य आचार्य जिनभद्र क्षमाश्रमण ने प्राकृत गाथाओ मे जीतकल्प सूत्र की रचना की थी। उसमे जीत व्यवहार के आधार पर प्रायश्चित्तो का सक्षिप्त वर्णन किया है। साधक के जीवन मे प्रायश्चित्त का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योकि मोक्ष के कारणभूत चारित्र के साथ उसका सम्बन्ध है । इस मे प्रायश्चित्त के दश भेदो का वर्णन है। आचार्य जिनभद्र क्षमाश्रमण कृत जीतकल्प-भाष्य इमी जीतकल्प सूत्र पर है। यह भाष्य केवल जीतकल्प सूत्र पर होते हुए भी इसमे समस्त छेद सूत्रो का रहस्य आचार्य ने भर दिया है । इसमे मूलसूत्र
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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