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व्याख्या-साहित्य - एक परिशीलन
वृहत्कल्प भाष्य, व्यवहार भाप्य और निशीय भाष्य-ये तीनो भाप्य बहुत विस्तृत है, इनमे साधु के आचार का मुख्य रूप मे वर्णन होते हुए भी यथाप्रसग इनमे धर्म, दर्शन, सस्कृति और परम्परा के भी मौलिक तत्व बिखरे पडे है। विविध देशो का, विविध भापाओ का और समुद्र-यात्राओ का बडा ही रोचक वर्णन है।
आचार्य जिनभद्र क्षमाश्रमण कृत विशेषावश्यक भाष्य मे जैन तत्व-ज्ञान को बहुत ही विस्तार के साथ मे प्रस्तुत किया है । यह ज्ञान का एक महासागर है। तत्व ज्ञान के क्षेत्र मे इतना विशाल अन्य कोई ग्रन्थ नहीं है । मुख्य रूप मे नीचे लिखे भाष्य ग्रन्थ बहुत ही प्रसिद्ध है -
१ बृहत्कल्प २ व्यवहार ३ निशीथ ४ विशेषावश्यक ५ पञ्चकल्प ६ जीतकल्प ७ लघुभाज्य
बृहत्कल्प-भाष्य
यह भाष्य बडा ही महत्वपूर्ण है। इसमे साधु-जीवन के आचार का विस्तार से वर्णन है । साधु के आहार, और दिन-चर्या का मौलिक रूप मे वर्णन किया है। उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का वर्णन बहुत विस्तृत है।
सम्यक्त्व और पांच ज्ञान का सक्षिप्त मे उल्लेख है। साध्वियो को दृष्टिवाद के अध्ययन का निषेध है। आचार्य कालक सुवर्ण-भूमि गए थे, इसका उल्लेख है। जिन-कल्प और स्थिर-कल्प मे क्या भेद है ? इसका बडे विस्तार से वर्णन किया गया है। सूत्र परिषदा और लौकिक परिषदा का मनोरजक वर्णन है । प्रशस्त भावना क्या है ? अप्रशस्त भावना क्या है ? उस युग मे लोगो के रहने के घर कैसे होते थे? और वे कैसे बनाए जाते थे। साधु को देशाटन करना चाहिए, और वहाँ की विभिन्न भाषाओ को सीखना चाहिए । रुग्ण साधु की चिकित्सा कैसे करना । विचार-भूमि, विहार-भूमि और आर्य-क्षेत्र की व्याख्या बहुत सुन्दर है।
___राग और द्वेप नही करना चाहिए। राग कैसे उत्पन्न होता है, इसका सुन्दर और मनोवैज्ञानिक वर्णन है । कहा गया है कि
"संदसणेण पीई, पोईउ रईल वीसंभो । वीसंभाओ पणओ, पचविहं वडढए पिम्म ॥