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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
गोविन्द-नियुक्ति
इस नियुक्ति को दर्शन-प्रभावक शास्त्र कहा जाता है। इससे प्रतीत होता है, कि इसमे दर्शन-शास्त्र के तथ्यो का वर्णन होगा । एकेन्द्रिय जीवो की सिद्धि करने के लिए आचार्य गोविन्द ने इसकी रचना की। बृहत्कल्प भाष्य मे, आवश्यक चूणि मे और निशीथ चूणि मे इसका उल्लेख है । यह किसी आगम पर न होकर स्वतन्त्र थी । पर आज यह उपलब्ध नहीं है।
आराधना-नियुक्ति
आराधना नियुक्ति अभी उपलब्ध नहीं है। चौरासी आगमो मे "आराधना पताका" एक आगम था । सम्भवत उसी पर यह नियुक्ति हो? इस विषय मे अनुसन्धान की आवश्यकता है । वट्टकेर ने अपने मूलाचार मे इसका उल्लेख किया है।
ऋषि-भाषित-नियुक्ति
चौरासी आगमो मे ऋषि-भाषित भी एक आगम है । प्रत्येक बुद्धो द्वारा भापित होने से इसे ऋषिभाषित कहा जाता है । इसके चव्वालीस अध्ययनो मे प्रत्येक बुद्धो के जीवन दिए गए हैं।
इस पर आचार्य भद्रबाहु ने नियुक्ति लिखी थी, जो आज उपलब्ध नहीं है।
सूर्यप्रज्ञप्ति-नियुक्ति
आचार्य भद्रबाहु ने सूर्यप्रशप्ति पर भी नियुक्ति की रचना की थी। परन्तु वह आज अनुपलब्ध है । आचार्य मलयगिरि ने अपनी टीका मे इसका उल्लेख किया है । परम्परा मे कहा जाता है, कि इसमे ज्योतिष शास्त्र के तथ्यो का बहुत सुन्दर वर्णन था । सूर्य की गति आदि का भो वर्णन था।
भाष्य-परिचय
भाष्य भी आगमो की व्याख्या है। परन्तु नियुक्ति की अपेक्षा भाष्य विस्तार मे होता है । भाष्यो की भाषा प्राकृत होती है, और नियुक्ति की तरह भाप्य भी पद्य मे होते है। भाष्यकारो मे सघदास गणि और जिनभद्र क्षमाश्रमण विशेष रूप से प्रसिद्ध है । विद्वान इनका सयय विक्रम की सातवी शती मानते है।