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व्यास्या-साहित्य एक परिशीलन
निशीथ नियुक्ति आचार्य भद्रवाहु-कृत है, इसका स्पष्ट उल्लेख चूर्णिकार ने स्वय इस प्रकार किया है-"आचार्य भद्रवाहु स्वामी नियुक्ति-गाथा माह ।"
निशीथ सूत्र मूल, उसकी नियुक्ति उमका भाप्य और उसकी चूणि-इन चारो का प्रकाशन मन्मति जानपीठ, आगरा से हो चुका है। इसका सम्पादन उपाध्याय अमर मुनि जी महागज ने बडे श्रम के साथ किया है । चार भागो मे प्रकाशन हुआ है।।
निशीथ, कल्प और व्यवहार-तीनो नियुक्तिया अपने-अपने भाग्यो में विलीन हो जाने मे स्वतन्त्र न रह सकी । फिर भी बीच-बीच मे चूर्णिकार और टीकाकार कहीं-कहीं पर मकेत कर देते है । जैसे"एसा चिरतण-गाहा ।"
___ उक्त तीनो नियुक्तियो का विषय प्राय ममान है। अधिकतर माधु के आचार का वर्णन है । यथाप्रसग अन्य बहुत-से विषय आ जाते है ।
पिण्ड-नियुक्ति
पिण्ड का अर्थ है-भोजन । इसमे आहार के उद्गम, उत्पादन, एपणा आदि दोपो का विस्तृत वर्णन है । यह आचार्य भद्रवाहु की कृति है । इसमें माधु-जीवन की आहार-विधि का वर्णन है । इसकी गणना मूल सूत्रो में की है।
इसमे आठ अधिकार है-उद्गम, उत्पादन, एपणा, मयोजना, प्रमाण, अगार, धूम और कारण । इस पर संस्कृत में आचार्य मलयगिरि ने बृहद वृत्ति लिपी और आचार्य वीर ने लघुवृत्ति निग्बी।
प्रोध-नियुक्ति
ओघ का अर्थ है-सामान्य, माधारण । साधु-जीवन की सामान्य ममाचारी का इसमे वर्णन किया गया है । इसके प्रणेता आचार्य भद्रवाह है । आवश्यक नियुक्ति का हो यह एक अग है । ओघ नियुक्ति की गणना मूल सूत्रो में की गई है। आचार्य द्रोण और आचार्य मलयगिरि ने इस पर सस्कृत टीका लिखी है । इसमे प्रतिलेखन, उपधि, प्रतिसेवना आलोचना और विशुद्धि आदि विषयो पर लिखा गया है। ससक्त-नियुक्ति
यह नियुक्ति किस आगम पर लिखी गई ? इसका उल्लेख नही मिलता । वैसे चौरासी आगमो में उसका उल्लेख है । कहा जाता है, कि यह भी आचार्य भद्रवाह की एक लघु रचना थी।