SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृनि-ग्रन्थ आचाराग के समान सूत्रकृताग मूत्र की नियुक्ति और मूल दोनो पर ही आचार्य शीलाक की विस्तृत एव गम्भीर टीका है । दार्शनिक मान्यताओ का खण्डन और मण्डन वडे विस्तार से किया गया है । दशाश्रु त स्कन्ध-नियुक्ति इसके प्रारम्भ में चरम सकल श्रुतनानी भद्रवाहु को नमस्कार किया गया है । समाधि, आगातना और शवल शब्द की सुन्दर व्याख्या की है । गणी और उसकी सम्पदाओ का विस्तृत वर्णन है । चित्र, उपासक, प्रतिमा और पर्युपण आदि का निक्षेप-पद्धति के साथ विवेचन किया गया है । इसमें पर्युपण के पर्यायवाची शब्द इस प्रकार है-पर्युपण, पर्युपगमना, परिवसना, वर्षावास, स्थापना और ज्येष्ठग्रह आदि । अज्ज मन का भी इसमे उल्लेख है। यह नियुक्ति बहुत महत्वपूर्ण है । बृहत्कल्प-नियुक्ति यह नियुक्ति स्वतन्त्र न रहकर वृहत्कल्प भाप्य मे मिश्रित हो चुकी है। दोनो की गाथओ में भेद करना कठिन हो गया है । इममे ताल और प्रलम्ब का विस्तृत वर्णन है। ग्राम क्या है ? नगर क्या है ? पत्तन क्या है ? द्रोणमुख क्या है ? निगम क्या है ? और राजधानी क्या है ? आदि का रोचक वर्णन है। उपाश्रय और उपाधि की व्याख्या की है । करप और अधिकरण का सुन्दर विवेचन है । यथाप्रसग लोककयामो का उल्लेख है। ___ साधु और साध्वी के आचार का, आहार का और विहार का वर्णन सक्षेप में होते हुए भी बहुत सुन्दर है । इस नियुक्ति को समझने के लिए इसके भाष्य और भाप्य की सस्कृत टीका का सहारा लेना पड़ता है। व्यवहार-नियुक्ति यह नियुक्ति भी अपने भाप्य में विलीन हो चुकी है। इसमे साधु-जीवन से सवद्ध अनेक महत्वपूर्ण वातो का सक्षेप मे वर्णन है । करप और व्यवहार की नियुक्ति, परस्पर शैली, भाव और भाषा मे बहुत कुछ मिलती-जुलती-सी है। साधना के तथ्य सिद्धान्तो का दोनो मे प्राय समान वर्णन है। निशीथ-नियुक्ति निशीथ-सूत्र की सब से पहले नियुक्ति व्याख्या वनी । सूत्र-गत शब्दो की व्याख्या निक्षेप पद्धति से की है । वहत्कल्प और व्यवहार नियुक्ति के समान निशीथ नियुक्ति भी अपने भाप्य में मिल गई है। चूर्णिकार जहाँ सकेत कर देते हैं, वही पर पता लगता है, कि यह नियुक्ति गाथा है और यह भाप्य गाथा है। नियुक्ति और भाप्य दोनो मिलकर एक ग्रन्थ बन गया है। उसकी सत्ता अलग नही रही । कहने को उसे आज भी हम अलग कहते है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy