SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन है । इसमे शिक्षाप्रद कथानको की बहुलता है। मरण की व्याख्या के प्रसग पर सतरह प्रकार के मरण का उल्लेख किया गया है । इस नियुक्ति मे गन्धार श्रावक, तोसलि पुत्र, स्थूलभद्र, कालक, स्कन्दक पुत्र और करकण्डू आदि का जीवन मकेत है । निन्हवो का वर्णन है। राजगृह के वैभार आदि पर्वतो का उल्लेख है । सूक्ति-वचनो की मधुरिमा पाठक के मन को उल्लसित कर देती है । एक नारी अपनी सखी से अपने पति के आलस्य के सम्बन्ध मे क्या कहती है "अइरुग्गयए य सूरिए, चेइयथूभगए य वायसे। भित्ती-गयए व प्रायवे सहि ! सुहिमो हु जणो न बुझइ ।" सूर्य का उदय हो चुका है । चैत्य स्तम्भ पर बैठ-बैठ कर काक बोल रहे है । सूर्य का प्रकाश ऊपर दीवारो पर चढ गया है, किन्तु फिर भी हे सखि | यह अभी सो ही रहे है । इस प्रकार के अन्य भी बहुत से प्रसग इस उत्तराध्ययन नियुक्ति मे आते है। आचाराग-नियुक्ति इसमे विविध विपयो का वर्णन उपलब्ध होता है। आचार क्या है ? इस पर गम्भीरता से विचार किया गया है। प्रारम्भ मे आचाराग प्रथम अग क्यो है ? और इसका परिमाण क्या है ? इस पर प्रकाश डाला गया है । मनुष्य जाति के वर्ण और वर्णान्तरो का वर्णन किया गया है । लोक, विजय, कर्म, सम्यक्त्व, विमोक्ष, श्रुत, उपधान और परिक्षा आदि शब्दो की सुन्दर व्याख्या की है। ____ आचाराग-सूत्र के मूल पर और इसकी नियुक्ति पर आचार्य शीलाक ने बडे विस्तार के साथ मे बहुत ही गम्भीर टीका की है । आचाराग को समझने के लिए शीलाक की टीका का अध्ययन करना ही पडेगा । शीलाक के पाण्डित्य की कदम-कदम पर अभिव्यक्ति होती है। इसमे आचाराग को प्रवचन का सार बताया गया है। देखिए ___ "अगाण कि सारो ? आयारो।" अर्थात् आचाराग समस्त अगो का सार है। सूत्रकृतांग-नियुक्ति प्रारम्भ मे "सूत्रकृताग" शब्द को व्याख्या की है । प्रसगवश गाथा, पोडश, विभक्ति, समाधि, आहार और प्रत्याख्यान आदि शब्दो की व्याख्या भी दी है । सब पर निक्षेप घटाने का सफल प्रयत्न है। इसमे ३६३ मतो का भी उल्लेख है। मुख्य रूप मे चार भेद है-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और वनयिक । नियुक्ति मे जो विपय सक्षिप्त है, टीका मे उसका विस्तार कर दिया गया है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy