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व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन
आगमो के निगूढ-भावो को स्पष्ट करना ही एक मात्र नियुक्तिकार का लक्ष्य होते हुए भी प्रसंगवश इनमे धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, इतिहास और विविध विषयो पर बडा सुन्दर विवेचन उपलब्ध हो जाता है। कुछ प्रसिद्ध नियुक्तियाँ ये है
१ आवश्यक २ दशवकालिक ३ उत्तराध्ययन
आचाराग
सूत्रकृताग ६ दशाश्रुत स्कन्ध ७ बृहत्कल्प ८ व्यवहार & ओघ १० पिण्ड ११. ऋषि-भाषित
इनके अतिरिक्त निशीथ नियुक्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति, ससक्त नियुक्ति, गोविन्द नियुक्ति और आराधना नियुक्ति भी प्रसिद्ध है। नियुक्तियो का अनुसन्धान अभी नहीं हो पाया है। अत नियुक्तियो की संख्या का निर्धारण नही किया जा सकता। यहाँ पर उपलब्ध नियुक्तियो का सक्षिप्त परिचय देना ही अभीष्ट है। प्रावश्यक-नियुक्ति
आचार्य भद्रबाहु की यह सर्व प्रथम कृति है । विपय-बहुलता की दृष्टि से और विपुल परिमाणता की दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसकी उपयोगिता और लोकप्रियता का सबसे प्रबल प्रमाण यही है, कि इस पर अनेक आचार्यों ने सक्षिप्त और विस्तृत टीकाएं लिखी है। टीकाकारो मे—जिनभद्र, जिनदास गणि, हरिभद्र, कोटयाचार्य, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्र और माणिक्य शेखर जैसे समर्थ विद्वान है। आवश्यक नियुक्ति पर आचार्य जिनभद्र-कृत विशेषावश्यक-भाष्य एक विशालकाय ग्रन्थराज है । प्रत्येक विषय को स्पष्ट और विस्तार से समझाने का सफल प्रयास है । सस्कृत टीकाकारो मे आचार्य मलयगिरि ने प्राञ्जल भाषा मे विशद व्याख्या की है।
इसमे ज्ञानवाद, गणधरवाद और निन्हववाद का सक्षेप मे कथन है । सामायिक के स्वरूप का वर्णन गम्भीर होते हुए भी रुचिकर है। शिल्प, लेखन और गणित आदि कलाओ का उल्लेख ऋषभ जीवन के प्रसग मे हुआ है। व्यवहार, नीति और युद्ध का वर्णन भी आया है। चिकित्सा, अर्थशास्त्र और उत्सवो का वर्णन भी यथा प्रसग आया है । उस युग के प्रसिद्ध नगर अयोध्या, हस्तिनापुर, श्रावस्ती
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