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________________ व्याख्या-साहित्य : एक परिशीलन है। इनके अतिरिक्त नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टीका-इन सबको भी प्रमाण मानती है, और आगम के समान ही इनमे भी श्रद्धा रखती है। श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा और श्वेताम्बर तेरापन्थी परम्परा केवल ११ अङ्ग, १२ उपाग, ४ मूल, ४ छेद, १ आवश्यक-इस प्रकार ३२ आगमो को प्रमाण-भूत स्वीकार करती है, शेष आगमो को नहीं। इनके अतिरिक्त नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टोकामो को भी सर्वाशत प्रमाण-भूत स्वीकार नही करती। दिगम्बर परम्परा उक्त समस्त आगमो को अमान्य घोपित करती है। उसकी मान्यता के अनुसार सभी आगम लुप्त हो चुके है । अत वह ४५ या ३२ तथा नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टीका-किसी को भी प्रमाण नहीं मानती। दिगम्बर प्रागम दिगम्बर परम्परा का विश्वास है, कि वीर निर्वाण के बाद श्रुत का क्रमश ह्रास होता गया। यहाँ तक ह्रास हुआ कि वीर निर्वाण के ६८३ वर्ष के बाद कोई भी अगधर अथवा पूर्वधर नहीं रहा। अग और पूर्व के अशधर कुछ आचार्य अवश्य हुए है। अश और पूर्व के अग ज्ञाता आचार्यों की परम्परा मे होने वाले पुष्पदन्त और भूतिबलि आचार्यों ने पट् खण्डागम की रचना द्वितीय अग्राह्यणीय पूर्व के अंश के आधार पर की और आचार्य गुणधर ने पाचवे पूर्व ज्ञान-प्रवाद के अश के आधार पर कषाय पाहुड की रचना की। भूतबलि आचार्य ने महाबन्ध की रचना की। उक्त आगमो का विषय मुख्य रूप मे जीव और कर्म है। बाद में उक्त ग्रन्थो पर आचार्य वीर सेन ने धवला और जय धवला टीकाएँ की । ये टीकाएँ भी उक्त परम्परा को मान्य हैं। दिगम्बर परम्परा का सम्पूर्ण साहित्य आचार्य द्वारा रचित है। आचार्य कुन्द-कुन्द के प्रणीत ग्रन्थ-समयसार, प्रवचनसार, नियमसार आदि भी आगमवत् मान्य हैदिगम्बर परम्परा मे। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के ग्रन्थ-गोमटसार, लब्धि-सार और द्रव्यसग्रह आदि भी उतने ही प्रमाण-भूत तथा मान्य है। आचार्य कुन्द-कुन्द के ग्रन्यो पर आचार्य अमृतचन्द्र ने अत्यन्त प्रौढ एव गम्भीर टीकाएं की है। इस प्रकार दिगम्बर साहित्य भले ही बहुत प्राचीन न हो, फिर भी वह परिमाण मे विशाल है, और उर्वर एव सुन्दर है। आगम-साहित्य की परिचय-रेखा आगम-साहित्य विपुल, विशाल और विराट है, उसका पूर्ण परिचय एक लेख मे नही दिया जा सकता । प्रस्तुत लेख मे, आगम और उसके परिवार की केवल परिचय रेखा ही दी गई है। यदि आगम के एक-एक अग का पूर्ण परिचय दिया जाए, तो एक स्वतन्त्र ग्रन्थ की ही रचना हो जाए । आवश्यकता तो इस बात की है, कि आगम, नियुक्ति भाप्य, चूर्णि, टीका, टब्बा और अनुवाद-सभी पर एक-एक स्वतन्त्र ग्रन्थ की रचना की जाए, जिससे आगम साहित्य का सर्वाङ्गीण परिचय जन-चेतना के सम्मुख प्रस्तुत किया जा
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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