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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृनि-ग्रन्थ
वर्तमान काल में
धर्म, दर्शन, मस्कृति और आगमो की दशा देख कर, यह विचार पैदा होता है, कि क्या आज के सभी श्वेताम्बर सम्प्रदाय-मूर्तिपूजक, स्थानकवामी और तेरापन्थी-मिलकर, उपलब्ध आगमो का मुन्दर मम्पादन करने के लिए एकत्रित होकर विचार नही कर सकते ?
आगमो की भाषा
आगमो की भापा, अर्घ-मागधी है। जैन अनुश्रुति के अनुसार तीर्थड्वर अर्घ-मागधी में उपदेश करते हैं। इसको देव-वाणी कहा गया है। अर्धमागधी को बोलने वाला भापार्य कहा जाता है। यह भापा मगव के एक भाग में बोली जाती है, इसलिए इसको अर्ध-मागधी कहते हैं। इसमें अठारह देशी भापाओ के लक्षण मिथित है । भगवान् महावीर के गिप्य-मगध, मिथिला, काशी, कौशल आदि अनेक देवो के थे। आगमो की भाषा में देश्य शब्दो की प्रचुरता है। जिनदासमहत्तर की व्याख्या के अनुसार मागधी और देव्य शब्दो का मिश्रण अर्व-मागवी है । कुछ विद्वान इसको प्राकृत भाषा भी कहते हैं ।
विषय-प्रतिपादन
आगमो में धर्म, दर्शन, सस्कृति, तत्व, गणित, ज्योतिप, खगोल, भूगोल, इतिहास-सभी प्रकार के विपय यथाप्रसङ्ग आ जाते हैं। दश वैकालिक और आचाराग में मुख्य रूप से साधु के आचार का वर्णन है सूत्रकृताग मे दार्शनिक विचारो का गहरा मन्थन है । स्थानाग और समवायाग में आत्मा, कर्म, इन्द्रिय, शरीर, भूगोल, खगोल, प्रमाण, नय और निमेप आदि का वर्णन है। भगवती मे गौतम गणघर और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तर हैं । ज्ञाता मे विविध विषयो पर रूपक और दृष्टान्त है । उपामक दशा मे दश श्रावको के जीवन का सुन्दर वर्णन है। अन्तकृत् और अनुत्तरोपपातिक में माधको के त्याग एव तप का वटा सजीव चित्रण है । प्रश्न व्याकरण मे पांच आरव और पांच सबर का सुन्दर वर्णन किया है । विपाक में कथाओ द्वारा पुण्य और पाप का फल बताया गया है। उत्तराध्ययन में अध्यात्म उपदेश दिया गया है। नन्दी में पॉच बान का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। अनुयोगद्वार मे नय एव प्रमाण का वर्णन है। छेद मूत्रो मे उत्सर्ग-अपवाद का वर्णन है। राज-प्रश्नीय मे राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण का अध्यात्म-सम्वाद सजीव एव मधुर है। प्रजापना मै तत्व-चिन्तन गम्भीर, पर बहुत ही व्यवस्थित है। आगमो मे सर्वत्र जीवन-स्पर्णी विचारो का प्रवाह परिलक्षित होता है। प्रागम-प्रामाण्य के विषय में मतभेद
आगम-प्रामाण्य के विषय मे एक मत नहीं है। श्वेताम्बर मूर्ति-पूजक परम्परा ११ अङ्ग, १२ उपाग, ४ मूल, २ चूलिका मूत्र, ६ छैद, १० प्रकीर्णक-इमी प्रकार ४५ आगमो को प्रमाण मानती