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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
विनय पिटक मे आचार है और अभिधम्म पिटक मे तत्व-विवेचन है। बौद्ध परम्परा का साहित्य भी विशाल है, परन्तु पिटको मे बौद्ध सस्कृति के विचारो का सारा सार आ जाता है । अत बौद्ध विचारो का एव विश्वासो का मूल केन्द्र-त्रिपिटक हैं। बुद्ध ने अपना उपदेश भगवान महावीर की तरह, उस युग की लन-भाषा मे दिया था। बुद्धिवादी वर्ग की उस युग मे, यह एक बहुत बडी क्रान्ति थी । बुद्ध ने जिस भाषा मे उपदेश दिया, उसको पाली कहते है । अत त्रिपिटको की भाषा, पालि भाषा है। महावीर की वाणी : भागम
जिन की वाणी मे, जिन के उपदेश मे, जिसको विश्वास है, वह जैन है । राग और द्वेष के विजेता को जिन कहते है । भगवान् महावीर ने राग और द्वेष पर विजय प्राप्त की थी, अत वे जिन थे, तीर्थपुर भी थे। तीर्थङ्कर की वाणी को जैन परम्परा मे आगम कहते है । भगवान् महावीर के समग्र विचार और समस्त विश्वास तथा सम्पूर्ण आचारो का सग्रह जिसमे हो, उसको "द्वादशाग वाणी" कहते है । भगवान् ने अपना उपदेश उस युग की जन-भाषा मे, जन-बोली मे दिया था। जिस भाषा मे महावीर ने अपने विश्वास, अपने विचार और अपने आचार पर प्रकाश डाला, उस भाषा को हम अर्ध-मागधी कहते है । अर्ध-मागधी को देव-वाणी भी कहते है। जैन-सस्कृति तथा जैन-परम्परा के मूल विचारो का और आचारो का मूलस्रोत आगम-वाड मय है । जैन परम्परा का साहित्य बहुत विशाल है । प्राकृत, सस्कृत, अपभ्रश, गुजराती, हिन्दी और अन्य प्रान्तीय भाषाओ मे भी विराट् साहित्य लिखा गया है। परन्तु यहाँ प्रस्तुत मे अन्य साहित्य चर्चा न करके केवल आगम-साहित्य की ही विचारणा की जाएगी। आगम-युग
वर्तमान युग के महामनीपी पण्डित सुखलालजी ने सम्पूर्ण जैन-साहित्य को पांच कालो मे, किवा पाच युगो मे विभाजित किया है । जैसे कि-आगम युग, अनेकान्त स्थापन युग, प्रमाणशास्त्र व्यवस्था युग, नव्य न्याय युग एव आधुनिक युग-सम्पादन एव अनुसन्धान युग। उक्त विभाजन इतनी दीर्घ दृष्टि से किया है, कि जैन वाड मय का सम्पूर्ण रूप इसमे गर्भित हो जाता है । पण्डित महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य, पण्डित दलसुख मालवणिया जी और प्रोफेसर मोहनलाल मेहता ने भी अपने ग्रन्थो मे इस विभाजन को अपनाया है । अन्य विषयो की विचारणा प्रस्तुत न होने से, और आगम की विचारणा प्रस्तुत होने से, हम यहाँ पर मूल आगम और उसके परिवार के सम्बन्ध मे सक्षेप मे विचार करेंगे ।
____ आगम युग का काल-मान, भगवान् महावीर के निर्वाण अर्थात् विक्रम पूर्व ४७० से आरम्भ होकर प्राय एक हजार वर्ष तक जाता है । वैसे, किसी न किसी रूप मे, आगम युग की परम्परा वर्तमान युग मे भी चली आ रही है। पागम प्रणेता कौन?
जैन परम्परा के अनुसार आगमो के प्रणेता अर्थ रूप मे तीर्थकर और शब्द रूप मे गणधर कहे जाते है । भगवान् महावीर की वाणी का सार, गणधरो ने शब्द-बद्ध किया। स्वय भगवान् ने कुछ भी