________________
व्याख्या-साहित्य : एक परिशीलन
विजय मुनि शास्त्री. साहित्यरत्न
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+
+++
+
+
+
+
+
+
++
+-+-+-+-+-+
भारत की सांस्कृतिक त्रिपथगा : वैदिक, जैन और बौद्ध
वेद, जिन और बुद्ध-भारत की परम्परा तथा भारत की संस्कृति के मूल-त्रोत है । हिन्दू धर्म के विश्वास के अनुसार वेद "ईश्वर की वाणी" है। वेदो का उपदेष्टा, कोई व्यक्ति विशेष नही था, स्वय ईश्वर ने उनका उपदेशन किया था। अथवा वेद ऋषियो की वाणी है, ऋषियो के उपदेशो का संग्रह है। मूल मे वेद तीन थे । अत वेदत्रयी उसको कहा गया । आगे चल कर अथर्ववेद को मिला कर चार वेद हो गए । अथर्व भी स्वतन्त्र वेद है । वेद की विशेष व्याख्या, ब्राह्मण ग्रन्थ और आरण्यक ग्रन्थ है । यहाँ तक कर्म-काण्ड मुख्य है । उपनिषदो मे ज्ञान-काण्ड की ही प्रधानता है। उपनिषद् वेदो का अन्तिम भाग होने से वेदान्त कहा जाता है। वेदो को प्रमाण मान कर स्मृति-शास्त्र तथा सूत्र-साहित्य की रचना की गई। मूल मे इनके वेद होने से ही ये प्रमाणित हैं । वैदिक परम्परा का जितना भी साहित्य विस्तार है, वह सब वेद मूलक है। वेद और उसका परिवार, संस्कृत भाषा मे है। अत वैदिक संस्कृति के विचारो को अभिव्यक्ति सस्कृत भापा के माध्यम से ही हुई। बुद्ध की वाणी : त्रिपिटक
बुद्ध ने अपने जीवन-काल मे अपने भक्तो को जो उपदेश दिया था-त्रिपिटक उसी का सकलन है। बुद्ध की वाणी को त्रिपिटक कहा जाता है । बौद्ध परम्परा के समग्र विचार और समस्त विश्वासो का मूल त्रिपिटक है । पिटक तीन है-सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक । पिटक मे बुद्ध के उपदेश है।