SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ सूत्रो का निर्माण उत्सर्ग और अपवाद दोनो मार्गों का निरूपण करने के लिए किया गया। उनमे औत्सगिक एव आपवादिक नियमो का तथा प्रमादवा अथवा मोह कर्म के उदय से आचार मे दोप लगने पर उसको शुद्धि के लिए प्रायश्चित का विधान है। कुछ आगम ऐसे है, जिनमे श्रामणो एव थामणोपासको के जीवन वृत्त दिए हुए है । उपासक दशाग, अनुत्तरोपपातिक दशाग और अन्तकृदशाग सूत्र श्रमण-संस्कृति की दिव्य विभूतियो के ज्योतिर्मय जीवन को आभा से आलोकित है । नाता-धर्मकथा मे कुछ घटित घटनामो के माध्यम से आत्म-साधना का उपदेश दिया गया है। विपाक सूत्र में पाप और पुण्य के कथानको के द्वारा शुभाशुभ कर्मों के फल का निरूपण किया है । उक्त आगमो मे प्रसगानुसार वास्तुकला एव ऐतिहासिक विषयो का वर्णन भी मिलता है। और अनेक स्थलो पर उस युग के सास्कृतिक जीवन की झाको भी देखने को मिलती है । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति-तत्कालीन भूगोल-खगोल से सम्बद्ध है। उत्तराध्ययन और प्रकीर्णक आदि आगम उपदेश प्रधान है। सूत्रकृताग, स्थानाग, प्रनापना, समवायाग, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, भगवती, नन्दी और अनुयोगद्वार आदि मागम दार्शनिक विपयो से सम्बन्धित है। सूत्रकृताग मे भगवान् महावीर के समय मे प्रचलित मत-मतान्तरो के सिद्धान्तो का निराकरण करके स्वमत की प्ररूपणा की गई है । इसमे भूतवादियो के मत का खण्डन करके पञ्चभूतो से अलग आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार किया है । अद्वैतवाद की एक आत्मा की मान्यता के स्थान में अनेक आत्माओ के अस्तित्व को माना है । ससार की उत्पत्ति के विषय मे ईश्वर-कृतित्व का निराकरण करके उसे अनादि-अनन्त माना है। __स्थानाग-समवायाग मे पदार्थों की गणना की शैली मे आत्मा, पुद्गल, ज्ञान, कर्म, नय-प्रमाण आदि विषयो का उल्लेख किया है। प्रज्ञापना मे जीव के विभिन्न भावो का विस्तार से वर्णन है । जीवाभिगम मे जीव-अजीब से सम्बन्धित विषय का विस्तृत विवेचन किया गया है । राज प्रश्नीय मे भगवान पार्श्वनाथ की परपरा के केशीश्रमण के द्वारा विभिन्न तों से समझाकर श्रावस्ती के नास्तिक राजा प्रदेशी को आस्तिक बनाने का उल्लेख है। इसमे आत्मा भौतिक तत्वो से सर्वथा भिन्न है, यह स्पष्ट किया है। भगवती सूत्र प्रश्नोत्तर की शैली मे है । इसके अनेक प्रश्नो मे नय, प्रमाण, जीव, अजीव, लोक, आदि अनेक दार्शनिक प्रश्न विखरे पडे है । इसके अतिरिक्त इसमे सास्कृतिक एवं ऐतिहासिक वर्णन भी उपलब्ध होता है। अनुयोगद्वार सूत्र में मुख्य रूप से आगमो का शब्दार्थ करने की प्रक्रिया का उल्लेख है । परन्तु प्रसगानुसार नय, प्रमाण एव तत्वो का भी सुन्दर ढग से निरूपण किया गया है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy