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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
६. महानिशीथ-सूत्र-इसमे आलोचना और प्रायश्चित का वर्णन है। महाव्रत का और विशेष करके चतुर्थ महावत का खण्डन करने वाले साधक को कितना दुख सहन करना पडता है, इसका वर्णन करके कर्म सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है । इसमे आचार-निष्ठ, आचार-हीन साधुओ का वर्णन है और कमलप्रभ आदि आचायों को कथाएं भी है। भापा और विपय की दृष्टि से इसकी प्राचीन आगमो मे गणना नहीं की जा सकती । इसमे तान्त्रिक विपय एव जैनागमो के अतिरिक्त अन्य ग्रन्यो का भी उल्लेख मिलता है।
प्रकीर्णक
१. चतुःशरण-इसमे यह बताया है, कि चार व्यक्तियो-१ अरिहन्त, २ सिद्ध, ३ साधु, और ४ धर्म का शरण लेने से दुष्कृत का नाश और सुकृत का उदय होता है । ये चारो शरण कुशल शुभ कार्य के कारण हैं । इसमे उक्त चारो के स्वरूप का भी वर्णन है । इसमे कुल ६३ गाथाएं है । उक्त शास्त्र का दूसरा नाम कुशलानुवन्ध भी है।
२. आतुर-प्रत्याख्यान-इसमे यह समझाया गया है कि वालमरण, वाल-पडित मरण और पडित-मरण किस व्यक्ति का होता है। इसमे इसका विस्तार से वर्णन है, कि पडित रोग-शय्या मे या मृत्यु का समय निकट जानकर किस प्रकार सब से क्षमत-क्षमापना, त्याग-प्रत्याख्यान, सलेखना एव अनशन त स्वीकार करता है।
३. भक्त-परिक्षा-इसमे मृत्यु के समय किए जाने वाले भक्त-परिज्ञा, इगित-मरण और पादपोगमन तीन प्रकार के अनशन व्रत एव उनके भेदोपभेदो का विस्तार से वर्णन है ।
४. संस्तारक-इसमे सस्तारक-मृत्यु के समय अनशन व्रत स्वीकार करते समय तृण की शय्या बिछाने का वर्णन है और इसके लिए अनेक दृष्टान्त भी दिए हैं। इसमे कुल १२३ गाथाएं है।
५. तन्दुल वैचारिक-इसमे सौ वर्ष की आयु वाला व्यक्ति प्रतिदिन जितना तन्दुल-चावल खाता है, उसका इसमे विचार किया गया है। इसमे मनुष्य की आहार विधि, गर्भ अवस्था, शरीर के उत्पादक कारण, सहनन, संस्थान, तन्दुल गणना आदि का वर्णन है । इसमे अधिकाश वर्णन गर्म के सम्बन्ध मे है । इसमे कुल १३६ गाथाएं और थोडा-सा गद्य भाग है।
६. चन्द्र वेध्यक-इसमे राधा-वेध्य का वर्णन है । इसका उदाहरण देकर साधक को यह उपदेश दिया गया है कि उसे आत्मा मे एकाग्र ध्यान करना चाहिए, जिससे उसे मोक्ष प्राप्त होगा।
'वस पयन्ना को मूर्तिपूजक समाज आगम रूप से स्वीकार करती है। और स्थानक वासी एव तेरह
पथ इन्हे आगम-साहित्य मे समाविष्ट नहीं करते ।