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________________ आगम साहित्य · एक अनुचिन्तन उसे कितना प्रायश्चित्त देना चाहिए। दूसरे उद्देशे मे अनेक साधु एक साथ विहार कर रहे है, उसमे से एक या अनेक साधु दोप का सेवन करे तो साथ के साधुओ को या अन्य साधुओ को क्या करना चाहिए, इसका वर्णन है । तीसरे मे गणि वनाने और कैसे साधु को आचार्य उपाध्याय आदि सात पदवियें देने या न देने का वर्णन है। चौथे मे बताया है, कि साधु-साध्वी को कितने साधु-साध्वी के साथ विहार एव चातुर्मास करना चाहिए । पाँचवे मे साध्वियो को प्रवत्तिनी आदि पदवियो का वर्णन है । छठे मे गोचरी, स्थडिल स्वाध्याय भूमि आदि के सम्बन्ध मे वर्णन है । सातवें मे दूसरी सम्प्रदाय से आने वाली साध्वी के साथ कैसा व्यवहार करना इसका तथा साध्वियो के अन्य नियमो का वर्णन है । आठवे मे गृहस्थ के मकान, तख्त आदि को कैसे काम मे लेना इसका उल्लेख है। नववें मे शय्यान्तर-मकान मालिक के सम्बन्ध में वर्णन है और दशवे मे दो प्रकार की प्रतिमा, दो तरह का परीपह, पांच व्यवहार, चार तरह के साघु, चार प्रकार के आचार्य और अमुक-अमुक आगम कितने वर्ष की दीक्षा पर्याय होने पर सीखना चाहिए आदि बातो का वर्णन है। ४. दशा श्रुतस्कंध-सूत्र-इसमे दस १० अध्ययन है। पहले अ० मे २० असमाधि दोप, दूसरे अ० मे २१ सबल दोप, तीसरे अ० मे ३३ आशातना, चौथे अ० मे आचार्य की आठ सपदा, पाँचवे मे चित्त समाधि के १० स्थान, छ? मे श्रावक की ११ प्रतिमा, सातवे मे भिक्षु प्रतिमा, आठवें मे भगवान महावीर के च्यवन, जन्म, सहरण, दीक्षा, केवल ज्ञान और मोक्ष जाने का समय, नववे मे मोहनीय कर्म बन्ध के ३० स्थान और दसवे मे नव निदानो का वर्णन है। प्रस्तुत आगम के दशा, आयारदशा और दसासुय नामो का भी उल्लेख मिलता है। इसके आठवे अध्ययन में भगवान महावीर के च्यवन, जन्म, महरण, दीक्षा, केवल ज्ञान और मोक्ष का तथा २४ तीर्थकरो का काव्यमय भाषा मे वर्णन है । इमका पज्जोसणा कप्प अथवा कल्पसूत्र नाम है। इस नाम से यह अध्ययन स्वतत्र आगम रूप से भी उपलब्ध है। ५. पचकल्प-सूत्र-प्रस्तुत आगम वर्तमान मे उपलब्ध नहीं है । पच कल्प-सूत्र और पच कल्पमहाभाप्य दोनो दो भिन्न ग्रन्थ नही, एक ही है। ऐसा विद्वानो का अभिमत है। जैसे पिंड नियुक्ति और ओघ-नियुक्ति स्वतत्र ग्रन्थ न होकर क्रमश दशवकालिक नियुक्ति और आवश्यक नियुक्ति से लिया गया अश है, उसी प्रकार पचकल्प या पचकल्पभाष्य वृहत्कल्प-भाष्य का अश है। आचार्य मलयगिरि और क्षेमकीति ने भी इसका स्पप्ट उल्लेख किया है । इस भाप्य के कर्ता सघादास गणि क्षमाश्रमण हैं।' ५ बृहत्कल्प भाष्य (स० मुनि पुण्य विजय जी) भाग ६, प्रस्तावना पृ० ५६ । २ स्थानक वासी और तेरह पथी निशीथ से लेकर दशाश्रुतस्कघ तक के चार सूत्रों को छेद सूत्र मानते हैं। शेष दो सूत्रो को मिलाकर मूर्ति पूजक सप्रदाय छेद सूत्रो की सख्या छह मानती है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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