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आगम साहित्य एक अनुचिन्तन
२४ प्रवचन-माता, २५ यज्ञीय, २६ समाचारी, २७ खलुकीय, २८ मोक्षमार्ग, २६ सम्यक्त्व-पराक्रम, ३० तपोमार्ग, ३१ चरण-विधि, ३२ प्रमाद-स्थान, ३३ कर्म-प्रकृति, ३४ लेश्या, ३५ अनगार-मार्ग, और ३६ जीवाजीव-विभक्ति है।
३ नन्दी-सूत्र-प्रस्तुत आगम मे तीर्थकरो, गणधरो के नाम, उनकी स्तुति, स्थविरावली, त्रिविध परिषदा, अवधि-ज्ञान, मन पर्यव-ज्ञान, केवल-ज्ञान, मति-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और श्रुत-साहित्य का वर्णन है ।
४ अनुयोग द्वार-सूत्र'-इसमे आवश्यक श्रुत-स्कध के निक्षेपो, उपक्रम-अधिकार, आनुपूर्वी, दस नाम, प्रमाण द्वार, निक्षेप, अनुगम और नय का वर्णन है। इसमे नव रस, काव्य-शास्त्र से सबद्ध कुछ बातो, महाभारत रामायण, कौटिल्य-शास्त्र, घोटक-मुख आदि का उल्लेख है ।
५ आवश्यकसाधु के लिए जो क्रिया अवश्य करने योग्य है उसे आवश्यक कहते है। उसके छह अध्ययन है-१ सामायिक, २ चतुर्विंशति-स्तव, ३ वन्दन, ४ प्रतिक्रमण, ५ कायोत्सर्ग और ६ प्रत्याख्यान ।
६ पिंड-नियुक्ति या प्रोघ-नियुक्ति
पिंड नियुक्ति मे आहार ग्रहण करने की विधि का उल्लेख है। इसमे आहार लेने और उद्गम उत्पादन, एषणा और ग्रासपणा के दोपो का वर्णन किया है।
ओष-नियुक्ति में सामान्य-विशेष की गहराई मे न उतर कर चरण-सतरी, करण-सतरी, प्रतिलेखन, पिंड-ग्रहण, उपधि-निरूपण, अयतना का त्याग, प्रतिषेवणा, आलोचना और विशुद्धि द्वार का वर्णन है । इसमे मुख्य रूप से चरण-करण का वर्णन है ।
छेद-साहित्य
१. निशीथ-छेद-सूत्रो मे श्रमण-श्रमणी के आचार, गोचरी-भिक्षाचरी, कल्प, क्रिया आदि मामान्य नियमो का वर्णन है। इसमे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का भी वर्णन
1 स्थानकवासी और तेरहपथ परम्परा उक्त चार आगमो को मूल सूत्र मानती है । मूर्ति पूजक सप्रदाय
के कुछ आचार्य ६ मूल सूत्र मानते हैं, और कुछ चार । जो चार मानते हैं, वे दशवकालिक, उत्तराध्ययन आवश्यक और पिडनियुक्ति या ओध-नियुक्ति को मूल-सूत्र मानते है। नन्दी और अनुयोग-द्वार को चूला मानते हैं और छह मानने वाले नन्दी और अनुयोगद्वार को भी उसमे समाविष्ट कर
लेते हैं।
• स्थानकवासी और तेरहपंथी इसे मूल-सूत्र नहीं, स्वतंत्र आगम मानते हैं।