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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-अन्य समय साधु को रास्ते में मिलने वाले महाजन आदि के सामने किस प्रकार वात करनी चाहिए । सातवें भाषा अध्ययन मे यह बताया है कि साधु को किस प्रकार से साध्वाचार का वर्णन करना चाहिए । आठवे आचार प्रणिधि अ० मे विशुद्ध आचार का वर्णन है । नववे विनय अध्ययन के चार उद्देशो मे विनय एव साधु जीवन का विस्तृत वर्णन है और दसवें भिक्षु अध्ययन मे बताया है कि जो श्रमण इसमे वर्णित आचार का पालन करता है, वही भिक्षु है । यदि कभी मोह कर्म के उदय से कोई साधु साधना से पतित हो रहा हो, तो उसे स्थिर करने के लिए इसमे दो चूलिकाएँ जोड दी गई है-१. रति वाक्य और २ विविक्त चर्या । प्रथम मे साधु को सयम मे स्थिर रखने के लिए नरक आदि का वर्णन है और दूसरी मे अपने मन को शान्त करने के लिए एकान्त स्थान में साधना करने का उपदेश दिया है। २. उत्तराध्ययन-सूत्र-जैन परपरा की यह मान्यता रही है कि प्रस्तुत आगम में भगवान महावीर की अन्तिम देशना का सकलन है । कुछ आचार्यों की यह मान्यता है कि भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्ति के पहले ५५ अध्ययन दुख-विपाक के और ५५ सुख-विपाक के कहे', उसके बाद बिना पूछे उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययनों का वर्णन किया । इसलिए इसे अपुटु वागरणा-अपृष्ट देशना कहते है। ऐसा भी कहा जाता है कि ३६ अध्ययन समाप्त करके भगवान् मरुदेवी माता का प्रधान नामक ३७ वे अध्ययन का वर्णन करते हुए अन्तर्मुहूर्त का शैलेशीकरण करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए। कुछ आचार्य इसे भगवान् की अन्तिम देशना नही मानते ।' प्रस्तुत आगम के वर्णन को देखते हुए ऐसा लगता है कि स्थविरो ने इसका बाद मे सग्रह किया है । कुछ अध्ययन ऐसे है, जिनमे प्रत्येक बुद्ध एव अन्य विशिष्ट श्रमणो के द्वारा दिए गए उपदेश एव सवाद का सग्रह है। आचार्य भद्रवाहु ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि इसमे के कुछ अध्ययन अग-साहित्य से लिए है, कुछ जिन-भापित है और कुछ प्रत्येक चुद्ध श्रमणो के सम्वाद रूप में है। जो भी कुछ हो, इतना तो मानना ही पडेगा कि प्रस्तुत आगम भापा, भाव एव शैली की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसमे सरल एव सरस पद्यो मे साध्वाचार एव आध्यात्मिक विषय का सुन्दर निरूपण किया है। प्रस्तुत आगम मे ३६ अध्ययन है-१ विनय, २ परीपह, ३ चतुरगीय, ४ प्रमादाप्रमाद, ५ अकाममरण, ६ क्षुल्लक-निर्ग्रन्थीय, ७ औरभ्रीय, ७ कापिलीय, ६ नमिपवज्जा, १० द्रुमपत्र, ११ बहुश्रुत १२ हरिकेशीय, १३ चित्त-सभूति, १४ इक्षुकारीय, १५ सुभिक्षुक, १६ ब्रह्मचर्य-गुप्ति, १७ पाप-अमण, १८ मयतीय, १६ मृगापुत्रीय, २० महानिर्ग्रन्थीय, २१ समुद्रपालीय, २२ रथनेमीय, २३ केशी-गौतमीय, १ वर्तमान मे दुख विपाक और सुख विपाक मे दस-दस अध्ययन है। ' जैनधर्म विषयक प्रश्नोत्तर। -आचार्य आत्माराम जी (विजयानन्द सूरि) ३ उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ४ ।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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