________________
आगम-साहित्य एक अनुचिन्तन
३ महाशुक्र, ४ बहु-पुत्तोया, ५ पूर्णभद्र, ६ मणिभद्र ७ दत्त ८ बल, शिव, और १० अनादीत देवो के पूर्व भव एव उनके द्वारा की गई साधना का वर्णन सुनाते है।
११ पुष्पचूलिका-सूत्र-इसमे दस अध्ययन है और हरि देवी आदि दस-देवियाँ अपने पुष्प. चूलिका विमान मे बैठकर भगवान् का दर्शन करने आती है और गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् उन देवियो के पूर्व-भव एव उनके द्वारा की गई साधना का वर्णन करते है।
१२ वृष्णि-दशा-सूत्र-प्रस्तुत आगम मे १२ अध्ययन है। इसमे वृष्णिवश के बलभद्र जी के निषढ कुमार आदि १२ पुत्र भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षित हुए और साधना करके सर्वार्थसिद्ध विमान मे गए और वहाँ सुख-वैभव एव आयु को भोग कर महाविदेह क्षेत्र मे जन्म लेकर मोक्ष जाएंगे, इसका वर्णन है।
मूल-साहित्य
१ दशवकालिक-सूत्र-चतुर्दश पूर्वधर आचार्य शय्यभव ने अपने पुत्र मनक की साधना को सफल नाने के लिए दशवकालिक सूत्र की रचना की ।' इसमे दस अध्ययन और दो चूलिकाएं है। इसमे साध्वाचार का वर्णन है।
यह दस अध्ययनो मे विभक्त है । प्रथम द्रम-पुप्पिक अध्ययन है । इसमे समस्त पुरुषार्थों मे धर्म को प्रधान माना है । इसकी प्रथम गाथा मे बताया है-अहिंसा, सयम और तप उत्कृष्ट मगल रूप धर्म है। अस्तु साधक को अपनी वृत्ति मधुकर की तरह ऐसी बनानी चाहिए कि जिससे वह किसी पर भारभूत न बने, उसके कारण किसी गृहस्थ को कष्ट न उठाना पडे और न अन्य जीवो को पीडा प्राप्त हो।
दूसरे श्रामण्य-पूर्वक अध्ययन मे राजमती और रथनेमि का सवाद दिया गया है। इससे यह बताया है कि साधक के मन मे सासारिक विपयो के प्रति राग-भाव पैदा न हो और यदि कभी मोहवश हो रहा हो, तो वह रथनेमि की तरह अपने जीवन को सभाल ले।।
तृतीय क्षुल्लिकाचार-कथा मे ५२ अनाचारो का वर्णन है, जो साधु के आचरण करने योग्य नही है। चतुर्थ-षट्-जीवनिका अध्ययन मे छह काय के जीवो का, उनकी रक्षा करने और पॉच महाव्रतो एव छ8 रात्रि भोजन के निषेध का वर्णन है । पाँचवे पिण्डेपणा अध्ययन मे साधु को कैसा आहार, किस प्रकार से लेना, इसका वर्णन है । छ8 महाचार कथा मे यह बताया है कि भिक्षा आदि के लिए जाते
१ आचार्य भद्रबाहु ने दशवकालिक नियुक्ति मे लिखा है कि चौथा अध्ययन, आत्म प्रवाद पूर्व
से, पाचवां कर्म-प्रवाद से, सातवां सत्य-प्रवाद पूर्व से और शेष अध्ययन नवमे प्रत्याख्यान पूर्व
की तीसरी वस्तु मे से उद्धृत किए हैं। -दशवकालिक नियुक्ति २ दिगम्बर-साहित्य के धवला, जयधवला ग्रन्थो मे भी यह गाथा परिलक्षित होती है।