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आगम-साहित्य . एक अनुचिन्तन
सागरो का विस्तृत वर्णन है । इस प्रकरण मे रत्न, अस्त्र-शस्त्र, धातु, मद्य, पात्र, आभूषण, भवन, वस्त्र, मिष्ठान, दास, त्योहार, उत्सव, यान और रोग आदि के भेदो का उल्लेख है। जम्बू द्वीप के वर्णन प्रसग में पद्मवरवेदिका की दहलीज, नीव, खम्भे, पटिए, सांधे, नली, छाजन आदि का उल्लेख किया है, जो स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
४ प्रज्ञापना-सूत्र-प्रज्ञापना का अर्थ है-प्र-प्रकर्ष रूप से ज्ञापन-करना-जानना । जिस आगम के द्वारा पदार्थ के स्वरूप को प्रकर्ष-व्यवस्थित रूप से जाना-समझा जाए, उसे प्रज्ञापना कहते है। इसमे जीव, अजीव, आस्रव, सवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष का वर्णन है । इसके १, ३, ५, १० और १३ वे पद मे जीव-अजीव का, १६ और २२ वे मे मन, वचन और काय इन योग और आस्रव का, २३ वे पद मे बन्ध का, ३६ वे पद मे केवली समुद्घात के साथ सवर, निर्जरा और मोक्ष का वर्णन है। अन्य पदो मे लेश्या, समाधि और लोक-स्वरूप को समझाया है।
प्रस्तुत आगम के ३६ पद हैं-१ प्रजापना, २ स्थान, ३ अल्पाबहुत्व, ४ स्थिति, ५ पर्याप्त, ६ उपपातोद्वर्तन, ७ उच्छवास, ८ सज्ञा, ६ योनि, १० चरम, ११ भाषा, १२ शरीर, १३ परिणाम, १४ कषाय, १५ इन्द्रिय, १६ प्रयोग, १७ लेश्या, १८ कायस्थिति, १६ सम्यक्त्व, २०. अन्त-क्रिया, २१ अवगाहना, २२ त्रिया, २३ कर्म-प्रकृति, २४ कर्म-बन्ध, २५ कर्म-वेद, २६ कर्मवेद-बन्ध, २७ कर्म-प्रकृति-वेद, २८ आहार, २६ उपयोग, ३० पश्यत, ३१ सज्ञा, ३२ सयम, ३३ ज्ञान-परिणाम, ३४ प्रविचार परिणाम, ३५ वेदना, और ३६, समुद्घात ।
५. जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति-इसमे जम्बूद्वीप एव उसमे स्थित भरतक्षेत्र का विस्तृत वर्णन है । यह आगम भूगोल विषयक है। इसका अधिकाश भाग भारत के वर्णन मे चक्रवर्ती सम्राट भरत की कथाओ ने घेर रखा है। इसमे अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में होने वाले सुपमा-सुपमा, सुषमा, सुषमा-दुषमा, दुषमा-सुपमा, दुषमा, दुपमा-दुपमा इन कालो का वर्णन है। इनमे प्रथम, द्वितीय और तृतीय आरे मे होने वाले १० कल्पवृक्षो और तृतीय चतुर्थ मे होने वाले तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव एव वासुदेव आदि का वर्णन है।
६. सूर्य प्राप्ति-इसमे सूर्य आदि ज्योतिष चक्र का वर्णन है । यह खगोल शास्त्र है । इसमे २० प्राभृत है-१ महलगति-सख्या, २. सूर्य का तिर्यक परिभ्रमण, ३ प्रकाश्य क्षेत्र परिमाण, ४. प्रकाश-सस्थान, ५. लेश्या-प्रतिघात, ६. प्रकाश कथन, ७ प्रकाश-सक्षिप्त, ८. उदय-अस्त सस्थिति ६ पौरुषी छाया परिमाण, १० योग-स्वरूप, ११ सवत्सरो का आदि-अन्त, १२. सवत्सरो के भेद, १३ चन्द्र की वृद्धि-क्षय, १४. ज्योत्स्ना परिमाण, १५ शीघ्र-मन्द गति निर्णय, १६. ज्योत्स्ना लक्षण, १७. च्यवन और उपपात, १८ ज्योतिषी विमानो की ऊँचाई, १६ चन्द्र-सूर्य सख्या, २० चन्द्र-सूर्य अनुभाव।