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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
इसमे दो श्रुत-स्कय हैं-१ दुख-विपाक और २ सुख-विपाक । पहले मे दस अध्ययन है१ मृगापुत्र, २ उज्जित, ३ अभग्न सेन, ४ शकट, ५ बृहस्पत्तिदत, ६ नन्दिपेण, ७ उम्बर दत्त, ८ सोरियदत्त, ६ देवदत्ता, और १० अजूदेवी । द्वितीय मे भी सुवाहुकुमार, भद्रनंदी आदि के दम अध्ययन हैं । इसमे सुवाहुकुमार के जीवन का पूरा वर्णन है । शेप नव अध्ययनो मे केवल नाम निर्देश किया है। उपांग-साहित्य
१. औपपातिक सूत्र–इस आगम मे चम्पा नगरी, पूर्णभद्र उद्यान, वन-खण्ड, अशोक वृक्ष, पृथ्वी-शिला का और चम्पा के अधिपति कौणिक राजा, महाराणी धारणी, और उसके राज परिवार तथा भगवान् महावीर का वर्णन है । कोणिक किस प्रकार भगवान् को वन्दन करता था, उनकी सेवा करता था, इसका भी वर्णन है। चम्पा के नागरिको का, कोणिक की सेना का, भगवान् की उपासना करने के लिए आने वाले नगर वासियो का, भगवान द्वारा अर्घ मागधी भाषा मे दिए जाने वाले प्रवचन का और समवशरणका विस्तृत उल्लेख है। इसमे विभिन्न सम्प्रदायो के तापस, श्रमणो एव भिक्षुओ, परिव्राजको, आजीवको, निन्हवो और तत्तत् साधना के द्वारा प्राप्त होने वाली देवगति मे उपपात आदि का उल्लेख है । इसके अतिरिक्त कर्म-वन्ध के कारण, केवली समुद्घात और सिद्ध स्वरूप का भी वर्णन है।
२ राजप्रश्नीय-सूत्र-नन्दी सूत्र मे इसे रायपसेणिय कहा है । आचार्य मलयगिरि ने रायपसेणीय नाम स्वीकार किया है। डॉ. विन्टजर का कथन है कि इसमे पहले राजा प्रसेनजित की कथा थी। परन्तु उत्तर काल में प्रसेनजित के स्थान में पएस लगाकर प्रदेशी के साथ इसका सम्बन्ध जोडने का प्रयल किया गया। वर्तमान मे इसमे प्रदेशी राजा के जीवन एवं केशी-श्रमण के साथ हुए सवाद का विस्तृत विवेचन मिलता है।
इसमे भगवान् पार्श्वनाथ को परपरा के केशी-श्रमण के साथ एक नास्तिक राजा प्रदेशी के सवाद का एव उसके जीवन परिवर्तन का उल्लेख है। राजा के जीवन परिवर्तन के कारण अर्थात् नास्तिक से आस्तिक बनकर श्रावक धर्म का परिपालन करते हुए समाधि-पूर्वक मरण से वह सूर्याभ नाम देव बना और देव बनने के बाद वह भगवान् के समवशरण मे उनका दर्शन करने आया तथा उसने भगवान् के मामने अपना नाटक प्रस्तुत किया। इसके आरम्भ मे सूर्याभदेव का वर्णन है। इसके वाद केशी-श्रमण द्वारा राजा प्रदेशो के तर्कों के दिए गए उत्तर एव प्रतिवोध का वर्णन है। डॉ. विन्टजर का कथन है कि इस सवाद के कारण प्रस्तुत आगम एक सरस एव रसप्रद ग्रन्थ बन गया है।
३. जीवाभिगम-प्रस्तुत आगम मे जीव, अजीव, द्वीप, समुद्र, पर्वत, नदी आदि का विस्तृत वर्णन है। जीवाभिगम का अर्थ है-जिस आगम मे जीव और अजीव का अभिगम-ज्ञान है । प्रस्तुत आगम मे नव-प्रकरण -प्रतिपत्ति है। इसमे तृतीय प्रकरण सब से विस्तृत है, जिसमे देवो एव द्वीप
१ दीघनिकाय के पायासिसुत्त मे भी प्रदेशी का प्राय. ऐसा ही वर्णन मिलता है।
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