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आगम-साहित्य एक अनुचिन्तन
अभ्यास किया, क्या साधना की, कितना घोर तप किया और किस प्रकार कर्म-बन्धनो को तोडकर मुक्ति को प्राप्त किया।
प्रस्तुत आगम मे आठ वर्ग है । वर्ग का अर्थ है अध्ययनो का समूह । इन आठ वर्गों में वर्तमान कालचक्र मे होने वाले २४ तीर्थकरो मे से २२ वे नेमिनाथ और २४ वे भगवान् महावीर के शासन मे होने वाले ६० श्रमण-श्रमणियो का वर्णन है। प्रथम वर्ग मे गौतम कुमार आदि १० श्रमणो का वर्णन है। द्वितीय वर्ग में अक्षोभ कुमार आदि आठ श्रमणो का, तृतीय मे अणीयस कुमार, गज सुकमाल आदि के १३ अध्ययन है । चतुर्थ वर्ग मे जाली आदि के दस अध्ययन है, पञ्चम वर्ग मे, पद्मावती आदि दस महाराणियो के दस अध्ययन है । उक्त पांचो वर्ग मे भगवान् नेमिनाथ के शासन मे होने वाले श्रमणश्रमणियो का उल्लेख है। पष्ठम वर्ग मे मकाई गाथापति, अर्जुन मालाकार, अतिमुक्त कुमार आदि के १६ अध्ययन है, सप्तम वर्ग में श्रेणिक राजा की नन्दा आदि तेरह महाराणियो के तेरह अध्ययन है और अप्टम वर्ग मे श्रेणिक की काली आदि दस महाराणियो के दस अध्ययन है।
६ अनुत्तरोपपातिक-दशॉग'-सूत्र
प्रस्तुत आगम मे उन दिव्य साधको की ज्योतिर्मय साधना का वर्णन है, जिसके द्वारा उन्होने अनुत्तर विमान के सुखो को प्राप्त किया है और वहाँ के सुखो का उपभोग करके मनुष्य भव मे जन्म लेकर साधना के द्वारा मुक्ति को प्राप्त करेंगे । अनुत्तर का अर्थ है-जिससे कोई प्रधान, श्रेष्ठ, या उत्तम नही है और उपपात का अर्थ है-जन्म ग्रहण करना। इसका अभिप्राय यह हुआ कि देवलोक के सर्वश्रेष्ठ या सर्वोत्तम विमानो मे जन्म लेने वाले साधक । ये अनुत्तर विमान पाँच है-१ विजय, २ वैजयन्त, ३ जयन्त, ४ अपराजित और ५ सर्वार्थ सिद्ध । इन विमानो को प्राप्त करने वाले सभी देव सम्यग् दृष्टि होते है और मनुष्य भव को प्राप्त करके सर्व कर्म-बन्धन से मुक्त-उन्मुक्त हो जाते है ।
' 'दशा' का अर्थ यस अध्ययन करने की परम्परा रही है। कुछ आगमो मे इसका अर्थ घटित भी होता
है। जैसे उपासक-दशा, इसमे दस अध्ययन ही है। परन्तु कुछ आगम ऐसे है कि उनमे दस से अधिक अध्ययन होने पर भी उन के साथ 'वशा' शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे प्रस्तुत आगम और अन्तकृत्वशा इनमे दस से अधिक अध्ययन हैं। प्रस्तुत आगम के तृतीय वर्ग के १० अध्ययन है और अन्तकृत्दशा में प्रथम एव अन्तिम अष्टम वर्ग के दस-दस अध्ययन है। इसी के आधार पर टीकाकारो ने इनके साथ सम्बन्ध 'दशा' शब्द को सार्थक माना है। परन्तु 'दशा' शब्द का दूसरा अर्थ स्थिति, प्रसग या अवस्था भी होता है अर्थात् प्रस्तुत आगम मे अनुत्तर विमान म्वर्ग को प्राप्त करने वाले व्यक्तियो की स्थिति या प्रसग का वर्णन है और यह अर्थ उचित भी प्रतीत होता है। क्योकि यह अर्थ मान लें तो फिर प्रथम या अन्तिम वर्ग के अध्ययनो को सख्या को घसीट कर अर्थ को बैठाने का प्रयत्न नहीं करना पडेगा और यह अर्थ सब जगह घटित भी हो जाएगा।