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________________ गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ को मारने और भगवान् पर प्रहार करने का वर्णन है। इसमे कौशाम्बी के शतानीक राजा की बहिन जयन्ती के द्वारा किए गए प्रश्नो और भगवान् के द्वारा दिए गए उत्तर तथा भगवान् के उपदेश से प्रभावित होकर साध्वी बनने की घटना का उल्लेख भी है। इसके अतिरिक्त इसमे भगवान् महावीर के समय के काशी-कौशल, मगध, वैशाली आदि देशो के और नव मल्लवी और नव लिच्छिवी राजाको के नाम तथा वज्जि-विदेह पुत्र ने विजय प्राप्त की उसका उल्लेख भी है । भगवती के नवम शतक मे एक पूंजीपति ब्राह्मण का वर्णन है। उसके यहाँ रहने वाली दासियो के पल्हवीया, आरबी, बहाँली, मुरदी, पारसी आदि नामो से यह ज्ञात होता है कि ये विदेशी दासियाँ थी। उस समय भारत का विदेशो से भी सम्बन्ध था। भगवती के अध्ययन से भगवान् महावीर के जीवन काल पर विशेप प्रकाश पडता है। प्रस्तुत आगम मे दार्शनिक, तात्त्विक, आध्यात्मिक, सामाजिक एव गणित सम्बन्धी विभिन्न विपयो पर प्रश्नोत्तर है । इसमे कुछ जीवन घटनाओ और कथाओ का भी उल्लेख है । अस्तु, यह विविध विपयो का एक कोप है। ६. ज्ञाताधर्मकथांग-सूत्र प्रस्तुत आगम मे दृष्टान्त एव उदाहरण देकर साधना के स्वरूप को समझाया गया है । ज्ञाता का अर्थ है-उदाहरण रूप और धर्म-कथा का अर्थ है-धर्मप्रधान कथानक । अस्तु ज्ञाता-धर्मकथा का मभिप्राय यह है कि साधक के सन्मुख धर्म-प्रवान दृष्टान्त एव उदाहरण प्रस्तुत करके उसे साधनापथ पर बढ़ने की प्रेरणा देना। इसमे उदाहरणो एव रूपको के द्वारा साधुओ के विनय, ज्ञान, वैराग्य का, साधना के पथ से विचलित एव तप एव परीपहो से घबराकर ससार की ओर झुकने वाले मन्द बुद्धि साधको को पुन धर्म मे स्थिर करने का और ज्ञान, दर्शन एव चरित्र से भ्रष्ट होने वाले साधक की ससार मे किस प्रकार दुर्गति होती है, उसे कैसा दुख उठाना पडता है, इसका विस्तार से वर्णन किया है। इसमे उन महापुरुषो के जीवन पर भी प्रकाश डाला है-जिन्होने राग-द्वेप, कपाय एव परीपहो की विशाल सेना पर विजय प्राप्त करली है, सयम-साधना को ही सर्वश्रेष्ठ धन समझकर श्रद्धा-निष्ठा से ज्ञान, दर्शन, और चारित्र की आराधना-साधना के माध्यम से साध्य को सिद्ध कर लिया है और अनुपम भोग-विलास का त्याग करके अनन्त और अव्यावाध सुख को प्राप्त कर चुके है । इसके अतिरिक्त इसमे उक्त दृष्टान्त, रूपक एव कथाओ मे आने वाले नगरो, गाँवो, उद्यानो, जगलो, सर-सरिताओ, राजाओ, सेठो, दास-दासियो, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, लोक-परलोक के ऐश्वर्य, भोग-विलास, भोग-साधनो के त्याग, स्वर्ग, नरक और मोक्ष के सम्बन्ध में विस्तार से उल्लेख मिलता है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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