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________________ आगम-साहित्य एक अनुचिन्तन करता है। ये चारो अजीव द्रव्य है । जीव चेतना से युक्त है, ज्ञानमय है। जीव द्रव्य अनन्त है, लोक व्यापी है, वर्ण, गध, रस, स्पर्श से रहित है, अरूपी है । पुगलास्तिकाय अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु है, लोक व्यापी है, वर्ण, गध, रस और स्पर्श से युक्त है, सडन-गलन और विध्वश को प्राप्त होते है । यह भी अजीव है, इसे अन्य दर्शनो की भापा मे जड, प्रकृति और माया कहा गया है। इसमे दस अध्ययन है। इन्हे स्थान कहते है और इन दस स्थानो मे जीव-अजीव आदि के भेद और उनके गुण-पर्यायो के भेदो की सख्याओ मे गणना की है। यह सख्या एक से लेकर दस तक है। प्रथम स्थान में एक-एक सख्या वाले पदार्थ गिनाए है, दूसरे मे दो-दो मख्या वाले और इस तरह दशम स्थान मे दस-दस की सख्या वाले पदार्थों की गणना की है। बौद्धो के अगुत्तरनिकाय मे भी एक से लेकर दस-दस तक सख्याओ के पदार्थों की गणना की है। दोनो की वर्णन शैली एक-सी है। ४ समवायॉग-सूत्र प्रस्तुत आगम स्थानाग की शैली मे रचा गया है। स्थानाग मे एक से लेकर दस तक सख्या के पदार्थों का वर्णन है और इसमे एक से लेकर कोडा-कोडी सख्या तक जीव-अजीव के भेद और उनके गुण-पर्यायो का वर्णन है । और उस सख्या के समुदाय को समवाय सज्ञा दी है। ५ व्याख्या-प्रज्ञप्ति-भगवती-सूत्र प्रस्तुत आगम का नाम व्याख्या-प्रज्ञप्ति है । व्याख्या का अर्थ है--विभिन्न प्रकार से किया गया कथन और प्रज्ञप्ति का अभिप्राय है-प्ररूपणा । यह आगम सब आगमो मे विशाल है । इसमे भिन्नभिन्न समयो मे विभिन्न व्यक्तियो द्वारा पूछे गए प्रश्नो का भगवान महावीर ने जो उत्तर दिया, उसका सकलन है । इसमे ३६,००० प्रश्नो के उत्तर है। इसमे प्रमुख प्रश्नकर्ता गौतम गणधर है। ऐसे गागेय अणगार, खधक सन्यासी, जयन्ती श्राविका आदि अनेक व्यक्तियो ने भगवान् से प्रश्न पूछे और उन्होने उनका समाधान किया। परन्तु इस आगम का अधिकाश भाग गौतम के प्रश्नो ने घेर रखा है । इसमे साधु-साध्वियो और श्रावक-श्राविकाओ के आचार, लोक-अलोक और पदार्थों के सम्बन्ध मे सूक्ष्म विचार चर्चा भी है। उस युग मे उठने वाले लोक-परलोक के अस्तित्व, नित्यत्व-अनित्यत्व, उसके परिणाम एव जीव आदि के अस्तित्व नास्तित्व पर गहराई से विचार किया गया है। इसमे आजीविक आदि अन्यतीथियो और पार्श्वपत्य-भगवान् पार्श्वनाथ के श्रमणो का उल्लेख किया है। इसमे भगवान् महावीर के वैशालीय, निग्रन्थ आदि नामो का, इन्द्रभूति आदि ११ गणधरो, रोह, खदक, कात्याय, तिसय, नारदपुत्र, सामहस्ति, आनन्द, सुनक्षत्र, मागन्दिय पुत्र आदि श्रमणो और पोखलि, धम्मघोष, सुमगल आदि श्रमणोपासको के नामो का उल्लेख भी मिलता है । इसमे भगवान् महावीर से अलग होकर अपनी सम्प्रदायो की स्थापना करने वाले जमाली और गौशालक का भी विस्तार से उल्लेख मिलता है । इसमे गौशालक के द्वारा छोडी गई तेजोलेश्या से भगवान् के दो शिष्यो
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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