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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
पालन नहीं करते कामभोगो मे लिप्त रहते है । अत वे विपय-भोग के पक से छुटकारा नही पा सकते । जो साधक आरम्भ-परिग्रह से मुक्त है, विषय-कषाय का परित्याग कर चुका है और काम-भोगो को ससार का कारण समझता है, वही सयम का शुद्ध पालन करके मुक्ति को प्राप्त कर सकता है।
दूसरा अध्ययन क्रिया स्थान है। इसमे बताया है कि जहाँ इच्छा है, वही कपाय है और कपाय ही ससार है । अत जहाँ इच्छा का अभाव है, वहां कपाय का भी अभाव है और कपायाभाव ही मोक्ष है । इसलिए प्रस्तुत अध्ययन में यह बताया है कि साधक को सासारिक क्रिया का त्याग करके ईर्यावही क्रिया को स्वीकार करने का प्रयत्ल करना चाहिए। इसका स्पष्ट अभिप्राय यह है कि साधक को वीतराग भाव को प्राप्त करना चाहिए ।
तीसरा आहार-परिक्षा अध्ययन है। इसमे शुद्ध एषणीय आहार ग्रहण करने का वर्णन किया है।
चौया प्रत्याख्यान-परिज्ञा अध्ययन है। इसमे बताया है कि जब तक व्यक्ति किसी क्रिया का त्याग नहीं करता, तब तक उसे सव क्रियाएं लगती रहती है । अत उसे क्रिया से होने वाले कर्म-बन्ध एव ससार-परिभ्रमण का ज्ञान करके सासारिक क्रियाओ का त्याग करना चाहिए ।
पांचवां आचार-अनाचार श्रुत अध्ययन है । इसमे शुद्ध आचार और उसमे लगने वाले अनाचारोदोपो का वर्णन है । साधक को अनाचारो से रहित शुद्ध-निर्दीप आचार का पालन करना चाहिए।
छट्ठा आर्दकीय अध्ययन है। इसमे अन्य दार्शनिको एव अन्य धर्म के आचार्यों तथा साधुओ के साथ आईक कुमार की जो विचार-चर्चा हुई, उसका उल्लेख है ।
सातवें नालन्दीय अध्ययन में श्रावक-गृहस्थ के आचार का वर्णन है। इसमे गृहस्थ जीवन का आदर्श बताया गया है।
३. स्थानांग-सूत्र
प्रस्तुत आगम मे पट द्रव्यो-१ धम, २ अधर्म, ३ आकाश, ४. काल, ५ जीव, और ६ पुद्गल का वर्णन है। इनमे जीव को छोडकर शेप पांचो द्रव्य अजीव हैं। एक से लेकर चार तक के द्रव्य अरूपी हैं । काल को छोडकर शेप पांचो द्रव्य अस्तिकाय-समूह रूप से है । काल द्रव्य समूह रूप से नही है । धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है, लोक परिमाण है, वर्ण, गध, रस, स्पर्श से रहित है, अरूपी है और जीव एव पुदगल की गति मे सहायक द्रव्य है । अधर्मास्तिकाय का भी यही स्वरूप है, इसमे केवल अन्तर इतना ही है कि यह जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक है । आकाशास्तिकाय भी एक द्रव्य है, लोक-अलोक व्यापी है, वर्ण, गध, रस और स्पर्श से रहित है, अस्पी है, जीव और पुदगल आदि पदार्थों को स्थान देता है, अवकाश देना आकाश का गुण है । काल द्रव्य अनन्त है, लोक व्यापी है, वर्ण, गध, रस और स्पर्श से रहित है, अरूपी है और यह नए पदार्थों को पुरातन बनाता है, पुरानो को समाप्त
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