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आगम-साहित्य एक अनुचिन्तन चतुर्थ अध्ययन स्त्री-परिज्ञा है। स्त्री-विषय-वासना के व्यामोह मे नहीं फंसना । जो साधक भोगविलास की आसक्ति मे आकर अपने पथ से भ्रष्ट हो जाता है, वह सदा दुख पाता है ।
पाँचवे अध्ययन का नाम नरक-विभक्ति है। इसमे नरक एव नारकीय जीवन का वर्णन है । नरक मे प्राप्त होने वाली वेदना एव दुखो को देख-समझकर साधक पर-धर्म एव सासारिक विषय-कषायो का त्याग करके स्व-धर्म स्वीकार करे।
छट्ठा वीर-स्तुति अध्ययन है। इसमे गणधर सुधर्मा स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर की स्तुति की है, उनका गुण-कीर्तन किया है ।
सातवां कुशील-परिभापा अध्ययन है । इसमे शुद्ध आचार से विपरीत यज्ञ-याग, स्नान, पचाग्नि आदि कुशील को धर्म मानने का निषेध किया है और बताया है कि इन मे धर्म मानने वाले ससार मे परिभ्रमण करते है । शुद्ध चरित्र इन से सर्वथा भिन्न है । साधक को शुद्ध-आचार का पालन करना
चाहिए।
आठवां अध्ययन वीर्य अध्ययन है। इसमे बाल और पडित वीर्य-बल, शक्ति एव पराक्रमपुरुषार्थ का वर्णन है।
नववे, दसवे और ग्यारहवे अध्ययन मे क्रमश. धर्म, समाधि और मोक्ष-मार्ग का वर्णन है । इनमे इन्द्रियों के विषय एव कपाय भाव का त्याग करके आत्म-धर्म मे रमण करने का उपदेश दिया है।
- बारहवाँ समवसरण अध्ययन है। इसमे क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी (Agnostics) और विनयवादी पर-मत के दोपो को दिखाकर स्व-दर्शन के मिद्धान्त को समझाया है।
तेरहवे से पन्द्रहवे तक के तीन अध्ययनो मे क्रमश यथा-तथ्य-धर्म के यथार्थ स्वरूप और पार्श्वस्थ साधुओ के स्वरूप, ग्रन्थ-परित्याग-परिग्रह के त्याग और आदान-समिति का वर्णन है । उक्त तीनो अध्ययनो मे शुद्ध चरित्र का वर्णन किया है।
. सोलहवे अध्ययन का नाम गाथा है । इसमे माहण-ब्राह्मण, श्रमण, निम्रन्थ और भिक्षु इन चारो का विस्तार से वर्णन किया है। द्वितीय श्रुतस्कंध
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दोनो श्रुतस्कधो के कर्ता एक नहीं है। प्रथम श्रुतस्कघ गणधर कृत है, द्वितीय से प्राचीन है और मौलिक है । द्वितीय श्रुतस्कध स्थविर-कृत है और प्रथम के साथ बाद मे जोडा गया है। इसमे सात अध्ययन है। प्रथम अध्ययन पौडरीक है। इसमें बताया है कि क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी मुक्ति को प्राप्त करने का सकल्प करते है, परन्तु वे ससार से विरक्त होकर सयम का
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