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आगम साहित्य . एक अनुचिन्तन
१०. प्रश्न-व्याकरण ११ विपाक १२ दृष्टिवाद
पुप्पिका पुप्प-चूलिका वृष्णि-दशा
उपाग-साहित्य का आचार्य उमास्वाति ने अपने भाप्य मे उल्लेख किया है और छेद सूत्रो का भी उनके भाप्य मे उल्लेख मिलता है। अत उपाग और छेद मूत्रो का वर्गीकरण आचार्य उमास्वाति के पूर्व ही हो गया था। मूल आगमो का नाम करण सबने अर्वाचीन है, ऐसा प्रतीत होता है । छेद और मूल आगमो की संख्या मे सभी आचार्य एक्मत नहीं है । कुछ आचार्य छेद-सूत्रो की संख्या चार मानते है१ निशीथ, २ व्यवहार, ३ बृहत्कल्प और ४ दशा-श्रुत-स्कर । कुछ आचार्य महानिशीय और जीत पल्प को मिलाकर छेद-सूत्रो की सत्या छह मानते हैं और कुछ जीत कल्प के स्थान में पञ्चकल्प को छेद-त्र मानते हैं।
मूल सूत्रो की मत्या में भी एकरूपता नहीं है। कुछ आचार्य चार मूल-मूत्र मानते है-१ दशवैकालिन २ उत्तराध्ययन, ३ नन्दी और ४ अनुयोग द्वार । कुछ आचार्य आवश्यक और ओघ-नियुक्ति को भी मूल-सूत्रो मे सम्मलित करके उनकी मत्या छह मानते हैं। कुछ ओघ-नियुक्ति के स्थान मे पिण्डनियुक्ति को मूल मूत्र मानते है । कई आचार्य नन्दी और अनुयोग द्वार को मूल सूत्र नहीं मानते । उनकी दृष्टि में ये दोनो चुलिका-नूत्र हैं । इस तरह अग-बाह्य आगमो का विभिन्न नमयो मे विभिन्न रूप से वर्गीकरण एव नामोल्लेख होता रहा है। ) वर्तमान मे प्रागम-साहित्य और उनकी संख्या
यह न बता चुके हैं कि अग-साहित्य के प्रणेता तीर्थकर है और उनके मूत्रकार गणधर है । अग वाह्य आगमो के रचयिता स्थविर है । जन-परम्परा मे आगमो को लिखने की नही, स्मृति में रखने की, कण्ठस्थ करने की परम्परा रही है । जव विस्मृति होने लगी, तो आगमो के प्रवाह को प्रवमान रखने रे लिए पाटलिपुत्र, मयुरा और वल्लभी में श्रमण-संघ का मिलन हुआ और तीनो वाचनाओ मे आगमपाठो को व्यवस्थित किया गया । अन्तिम वाचना के नमय देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने बल्लभी में सम्मिलित श्रमण संघ से प्राप्त पाठो को व्यवस्थित स्प से संपादित करके उन्हें लिपिवद्ध कर दिया । अत आगममाहित्य के लिपिकार या सपादक देवद्धिगणी क्षमाश्रमण को माना गया है।
\ नन्दी सूत्र की रचना देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने की। इसमे पांच ज्ञान की व्यात्या की गई है और आगम साहित्य का भी परिचय दिया गया है । नन्दी नूत्र मे आगम साहित्य को सूची निम्न प्रकार से दी गई है