SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मागग जग-प्रविष्ट अनग-प्रविण्ट- अग-बाहा आचाराग, सुरागाताग, स्थानाग रागनागाग, विवाह प्रज्ञप्ति--भगपती शाताधर्म कथा, उपासनदशाग, अन्तगुददशाग, अनुत्तरोपपातिक दशाग, प्रश्न-व्याकरण, विपाक, दृष्टिवाद । आवश्यक आनण्यका-गतिरिक सागायिक, नतुविशतिस्तव, नन्दना, प्रतिागण, कायोत्रार्ग और पत्याख्यान । गुन्देव श्री स्न मुनि स्मृनि-ग्रन्य कातिक उस्कातिग उत्तराध्ययन, दशाभुत-स्मान्म, नाल्प, व्यवहार, निशीथ, गहानिशीथ, पिभापित, जम्बुलीप-प्रज्ञप्ति, दीपराागर प्रशन्ति, चन्द्र-प्रशन्ति, शुल्लिाका विगान-प्रविशक्ति, गहल्लिका विगान-प्रविशक्ति, अग चुतिका, वगालिगा, विवाह नलिका, अरुणोवपात, वरुणोवपात, गरुषोवपात, धरणोवपात, रामणोवपात, वेलंधरोवपात, देखियो वपात, उत्थान-श्रुत, समुत्थान-शुत, नागपरिया-गनिका, निरयापलिका, कलिगता, कलावतसिका, पुणिका पुष्पप्रतिका, वृष्णिदशा, आशीविमभावना, दुप्टिविपभावना, चरण-भावना, महास्वप्न भावना, तेजोग्नि-निसर्ग। दशवकासिक, कल्पिकाकल्पिक, तुल्स-गल्प-श्रुत, महाकल्प-पत, औपपातिक, रागप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, गहाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नन्दी, अनुयोगद्वार, देवेन्द्र-स्तव, तन्दुरा-वैचारिका चन्द्रावेध्यक, सर्य-प्रशान्ति, पौरुपी-मडरा, मडरा-प्रवेश, विद्याचरणविनिश्चय, गणि-विद्या, ध्यान-विगक्ति, गरण-विभक्ति, आत्म-विशुन्द्रि, वीतराग-श्रुत, सरोखना-श्रत विहार-कल्प, वरण-विधि, आतुर-प्रत्याख्यान, गहा-प्रत्याख्यान ।' १ नन्वी सूत्र, ४३, मूल-सुत्ताणि पृ० ३११
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy