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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ आगमो का वर्गीकरण आगमो मे द्वादशागी को तीर्थकर प्रणीत कहा गया है । भगवान् महावीर के युग मे द्वादशागी के अतिरिक्त आगमो के अन्य नामो का उल्लेख नहीं मिलता। उनके निर्वाण के वाद अन्य आगमो की रचना की गई, तव यह प्रश्न उठा कि इन आगमो को क्या सजा दे, उस समय आगमो को दो भागो मे विभक्त किया गया-१ अग-प्रविष्ट, और २ अग-वाह्य । दिगम्बर साहित्य मे और स्थानाग एव नन्दी मूत्र मे आगमो का यही वर्गीकरण मिलता है । परन्तु जव पूर्व-साहित्य का लोप होने लगा और स्थविरो ने पूर्वो एव अग साहित्य मे से अन्य आगमो का निह यण किया और कुछ आगमो की रचना की, तव उन्हे भिन्न सज्ञा दी गई । मूल वर्गीकरण तो अग और अग वाह्य के रूप मे ही रहा, परन्तु अग-वाह्य को चार भागो मे विभक्त किया गया१ उपाग, २ छेद, ३ मूल और ४ आवश्यक ।। आगमो का वर्गीकरण करते समय आगम-पुरुप की कल्पना की गई और अग-प्रविष्ट को पुरुप के अग–स्थानीय और उपागो को उपाग-स्थानीय माना गया। पुरुप के दो पैर, दो जघाएँ, दो उरू, दो गात्रार्घ, दो वाहु, ग्रीवा और गिर-ये १२ अग होते है, वैसे श्रुत-पुरुप के आचाराग आदि १२ अग है।' कर्ण, नासिका, चक्षु, हाथ आदि उपाग है। श्रुत-पुरुप के भी औपपातिक आदि द्वादश उपाग है । द्वादशअग और द्वादश-उपाग साहित्य का विवरण निम्न है अग उपाग १ आचाराग २ सूत्रकृताग ३ स्थानाग ४. समवायाग ५ भगवती ६. ज्ञातधर्मकथाग औपपातिक रायप्रश्नीय जीवाभिगम प्रज्ञापना जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूर्य प्रज्ञप्ति चन्द्र प्रज्ञप्ति कल्पिका कल्पावतसिका ७ उपासकदशाग ६. अन्तकृद्दशाग ६ अनुत्तरोपपातिक दशाग ' पायदुर्ग जघोरु गायदुगद्धं तु दोय बाहू य। गीवा सिर च पुरिसो बारस अगो सुयविसिट्टो॥ –नन्दी सूत्र, टीका-आचार्य मलयगिरि, ४३
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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