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________________ गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ चलती रही। वीर निर्वाण स० ५७१ और वि० स० १०१ मे उनका स्वर्गवास हो गया। उसके बाद दशम पूर्व भी विच्छिन्न हो गया । और वीर-निर्वाण स० ६०४ (वि० स० १३४) मे आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के निधन के साथ नवम पूर्व भी लुप्त हो गया और आचार्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण के स्वर्गवास के बाद पूर्वो का पूर्णत लोप हो गया । वीर निर्वाण के एक हजार (वि० स०५३०) के पश्चात् कोई भी पूर्वधर श्रमण नहीं रहा। दिगम्बर परपरा के अनुसार वीर निर्वाण के ६२ वर्ष तक केवल ज्ञान का अस्तित्व रहा । आचार्य जम्बू स्वामी अन्तिम केवल ज्ञानी हुए । उनके निर्वाण के बाद १०० वर्ष तक चौदह पूर्वो का ज्ञान रहा। आचार्य भद्रबाहु अन्तिम चौदह पूर्वधर थे । उनके पश्चात् १८३ वर्ष तक 'दश पूर्व रहे । आचार्य धर्मसेन दश वर्ष पूर्व के अन्तिम ज्ञाता थे। उनके पश्चात् पूर्वो का लोप हो गया, २२० वर्ष तक एकादश अगो का ज्ञान रहा। एकादश, अग-साहित्य के अन्तिम अध्येता आचार्य ध्रुवसेन थे। उनके पश्चात् ११८ वर्ष तक केवल एक अग-आचाराग सूत्र का अध्ययन चलता रहा । इसके अन्तिम ज्ञाता आचार्य लोहार्य थे। वीर-निर्वाण ६५३ (वि० स० २१३) के पश्चात् आगम-साहित्य का पूर्णत लोप हो गया। केवल ज्ञान के विच्छिन्न होने की। मान्यता मे दोनो परपराएं-श्वेताम्बर और दिगम्बर एक मत है। चार पूर्वो का लोप आचार्य भद्रबाहु के पश्चात् हुआ, इसमे भी दोनो एकमत हैं । केवल समय मे थोडा-सा अन्तर है । श्वेताम्बर परपरा भद्रबाहु का स्वर्गवास वीर-निर्वाण स० १७० मे मानती है, और दिगम्बर परम्परा १६२ मे केवल ८ वर्ष के समय का अन्तर है । यहाँ तक उभय परपराएं एक-दूसरे के साथ-साथ चलती रही हैं। इसके पश्चात् दोनो परपराओ की मान्यताओ मे दूरी बढती गई । दशम पूर्व के लोप होने की मान्यता मे दोनो मे समय का बहुत लम्बा अन्तर है । श्वेताम्बर परपरा के अनुसार दश पूर्वो के ज्ञाता वीर-निर्वाण से ५८४ वर्ष तक हुए और दिगम्बर परपरा दश पूर्वधर का समय वीरनिर्वाण स० २४५ तक ही मानती है । श्वेताम्बर परम्परा एक पूर्व की परपरा को देवद्धिगणी के समय तक मानती है और एकादश अगो को वर्तमान काल तक सुरक्षित मानती है, जबकि दिगम्बर परपरा वीर-निर्वाण ६८३ वर्ष के पश्चात् आगम-साहित्य का पूर्णत लोप स्वीकार करती है। प्रागम-साहित्य का मौलिक रूप वर्तमान मे उपलब्ध आगम-साहित्य मौलिक है या नही ? इसके सम्बन्ध मे जैन-परपरा मे दो विचारधाराएं है-१ दिगम्बर विचारधारा और २ श्वेताम्बर विचारधारा । दिगम्बर विचारधारा के अनुसार श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के ६८३ वर्ष के बाद आगम-साहित्य का सर्वथा लोप हो गया। वर्तमान में उपलब्ध एक भी आगम मौलिक नही है। श्वेताम्बर परपरा की मान्यता के अनुसार आगम-साहित्य का बहुत बडा भाग लुप्त हो गया, परन्तु उसका पूर्णत लोप नही हुआ । उसका कुछ अश आज भी विद्यमान है। द्वादशागी मे से एकादश अग वर्तमान में विद्यमान हैं और पाटलिपुत्र. मथुरा एव वल्लभी मे उन्हे व्यवस्थित रूप दिया गया।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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