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आगम साहित्य : एक अनुचिन्तन
पाहुड की जयधवला टीका मे गौतम गणधर को द्वादशाग और चौदह पूर्व का सूत्र-कर्ता कहा गया है।' इस मान्यता का समर्थन अन्य ग्रन्थो मे भी उपलब्ध होता है । आचार्य उमास्वाति ने अपने तत्त्वार्थ भाष्य मे आगम के अग और अग बाह्य भेद करने के अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि "जो आगम गणधर कृत है, वे अग है और जो स्यविर कृत है, वे अग-बाह्य है। इससे स्पष्ट होता है कि आगम-युग को मूल मान्यता अग-साहित्य को ही गणधर-कृत मानने की रही है ।
नन्दी सूत्र की चूणि और आचार्य हरिभद्र रचित टीका मे अग और अग-बाह्य की रचना के मम्बन्ध मे दो विचार धाराएँ दिखाई देती है। उसमे एक विचारधारा अग-साहित्य को गणधर कृत और अग-वाह्य को स्थविर कृत मानने की है। दूसरी अग-बाह्य को भी गणधर कृत मानने की है। यह कहना कठिन है कि यह दूसरी मान्यता कब से प्रचलित हुई। परन्तु इतना निश्चित है कि आवश्यक सूत्र गणधरकृत है, यह मान्यता आवश्यक नियुक्ति मे स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है । आवश्यक सूत्र के सामायिक अध्ययन के उपोद्घात में नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने जो प्रश्न उठाए है और स्वय ने ही जो उनका उत्तर दिया है, उसका अनुशीलन-परिशीलन करने वाले पाठक को यह स्पष्ट हो जाएगा कि आचार्य बारबार घूम-फिर कर इस बात को सिद्ध करने का प्रयत्न करते है कि आवश्यक सूत्र के सामायिक आदि अध्ययनो की रचना गणधरो ने की है। विशेषावश्यक भाष्य के रचयिता आचार्य जिनभद्र ने भी नियुक्ति के मत का समर्थन किया है । आचार्य भद्रबाहु का कथन है कि मैं जो सामायिक आदि अध्ययनो को गणधर कृत कह रहा हूँ, यह मान्यता मुझे परपरा से प्राप्त है । जब हम इस परपरा का अन्वेषण करते है तो आवश्यक सूत्र के सामायिक अध्ययन को गणधर कृत मानने को परपरा अनुयोगद्वार सूत्र-जहाँ आवश्यक का वर्णन किया गया है, मिलती है ।' अनुयोगद्वार सूत्र की चूणि मे चूर्णिकार ने उक्त गाथाओ के सम्बन्ध मे कुछ नही कहा है। परन्तु अनुयोगद्वार सूत्र के वृत्तिकार आचार्य हरिभद्र सूरि ने इसका वर्णन किया है । इससे ऐसा माना जा सकता है कि उक्त गाथाओ का अभिप्राय यह है कि आवश्यक सूत्र गणधर कृत है । एक बात यह भी है कि आगमो मे जहाँ श्रमण-श्रमणी के एकादश अग के अध्ययन का वर्णन आता है, वहाँ पर उल्लेख मिलता है-"अमुक श्रमण-श्रमणी ने स्थविर भगवान के पास सामायिक
१ षट्खडागम, धवलाटीका, भाग १, पृष्ठ ६५, कषाय पाहुड, जयधवला टीका, भाग १, पृष्ठ ८४ २ तत्वार्थ भाष्य, १, २०. 3 नन्दी सूत्र, चूणि, पृष्ठ ४७, ६०. ४ आवश्यक नियुक्ति, गाथा १४०-४१. ५ आवश्यक नियुक्ति, गाथा, ८०, ९०, २७०, ७३४, ७३५, ७४२, ७४५, ७५० और विशेष० भाष्य,
गाथा, ६४८-४६, ९७३-७४, १४८४-८५, १५४५-४८, १५५३, २००२-८३, २०८६ । ६ अनुयोग द्वार सूत्र, १५५. ७ अनुयोगद्वार वृत्ति, आचार्य हरिभन्न कृत, पृष्ठ १२२.