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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
सुधर्मा गणधर की वाचना है । गौतम आदि अन्य दश गणधरो की आठ वाचनाएँ थी, परन्तु वर्तमान मे उनका अस्तित्व नही रहा । इसलिए वर्तमान मे उपलब्ध एकादश अग साहित्य के रचियता सुधर्मा गणधर माने जाते है।
रचना की दृष्टि से अनग-प्रविष्ट आगम-साहित्य को दो भागो मे विभवत कर सकते है१ स्थविरो द्वारा रचित अनग-अग-बाह्य साहित्य और २ स्थविरो द्वारा निर्मूढ अनग साहित्य । स्थविरो ने कुछ आगमो की अपनी भाषा मे रचना की है और कुछ आगमो को पूर्व एव अग साहित्य मे से उद्धृत किया है । जिन आगमो को पूर्व या द्वादशागी मे से उद्धृत या सकलित किया गया है, उन्हे नियूद कहते है । दशवकालिक, आचाराग का द्वितीय श्रुतस्कध, निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प, दशाश्रुत-स्कध ये नियूंढ आगम है । आचार्य शय्यभव ने थोडे समय मे अपने अल्पायु पुत्र मनक की साधना मे तेजस्विता लाने के लिए दशवकालिक सूत्र का निर्युहन किया। इसके अतिरिक्त अन्य आगमो के निर्यहक श्रुत-केवली आचार्य भद्रबाहु है। प्रज्ञापना-सूत्र के रचियता श्यामाचार्य, अनुयोगद्वार सूत्र के निर्माता आर्य रक्षित और नन्दी सूत्र के देवद्धिगणि क्षमाश्रमण माने जाते है ।
मागमों के निर्माता
आगमो के निर्माता या कर्ता कौन हैं ? इस विषय मे सभी आचार्य एकमत नहीं है। आगम एव उसके व्याख्या साहित्य का अध्ययन करने पर इस सम्बन्ध मे हमे दो विचारधाराएं देखने को मिलती है । एक विचारधारा-जो प्राचीन है, यह मानती है कि द्वादशागी के कर्ता गणधर है और उपाग आदि अग-बाह्य भागम-साहित्य के निर्माता स्थविर है । दूसरी विचार धारा-जो अर्वाचीन है, की मान्यता है कि अग एव अग-बाह्य समस्त आगमो के निर्माता गणधर ही है ।
अनुयोग द्वार सूत्र मे लोकोत्तर आगमो का वर्णन करते हुए लिखा है कि आचाराग से लेकर दृष्टिवाद तक द्वादश अगो के प्रणेता तीर्थकर हे । इसका अभिप्राय इतना ही है कि तीर्थकरो के उपदेश को गणघरो ने सूत्र रूप मे गूथा या उनके प्रवचनो के आधार पर गणधरो ने द्वादशागी की रचना की ।' यही बात नन्दी सूत्र मे सम्यक श्रुत के प्रसग मे उल्लिखित है। षट्खडागम की धवला टीका और कषाय
१ लोगुत्तरिए-जण इम अरिहतेहि भगवतेहि उप्पण्ण-णाण-दसण-धरौह तीय-पच्चुप्पण्णमणागय-जाणहि तिलुक्कवहित महित-पूइएहि, सय्वपहि सव्वदरिसीहि पणीज दुवालसग गणिपिडग, तजहाआयारो नाव रिद्विवाओ।
-अनुयोगद्वार सूत्र, ४२ २ नन्दी सूत्र, ४०