SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ मागधी भाषा मे प्रवचन देते थे और इसी भाषा मे श्रुत-साहित्य की रचना की गई। निशीथ चणि मे चूर्णिकार ने इस बात का उल्लेख किया है कि "पुराण-सूत्र-आगमो की भाषा अर्धमागधी निश्चित है।' अत चूर्णिकार जिनदास महत्तर अर्धमागधी का अर्थ दो प्रकार से करते है-आधे मगध देश मे बोली जाने वाली भाषा, और २ अठारह जाति की देशी भाषा । अठारह जाति की देशी भाषा का उल्लेख ज्ञाता-धर्म कथा और औपपातिक सूत्र में मिलता है। इससे यह निश्चित होता है कि श्रुत-साहित्य अर्धमागधी भाषा मे रचा गया । आचार्य हेमचन्द्र ने इसे 'आप' कहा है-इसके लिए आगम मे ऋषिभाषित शब्द का प्रयोग मिलता है। इस बात मे समस्त आचार्य एकमत है कि तीर्थकर अर्धमागधी भाषा मे उपदेश देते है और एकादश अग भी अर्धमागधी भाषा मे है। परन्तु, दृष्टिवाद-जिसमे चौदह पूर्व अन्तर्गत है, की भाषा कौन-सी है ? वह सस्कृत मे रचा गया या प्राकृत मे ? अब तक विद्वानो का मत है कि पूर्वो की भाषा सस्कृत थी । भाषा की जटिलता एव विषय की गहनता के कारण अन्य एकादश अगो की रचना प्राकृत या अर्धमागधी भाषा मे की गई। प्रभावक चरित्र के रचियता श्री प्रभाचन्द सूरि ने प्रभावक चरित्र मे लिखा है-पुरातन काल मे चौदह पूर्व संस्कृत भापा मे थे। प्रज्ञातिशय साध्य होने के कारण काल की प्रबलता से उनका विच्छेद हो गया । वर्तमान में आर्य सुधर्मा स्वामी द्वारा रचित एकादश अग है । उन्होने मन्दबुद्धि स्त्री-पुरुषो के सुगमता से समझ मे आ सके, इसलिए एकादश अगो की प्राकृत मे रचना की। इस सम्बन्ध मे श्री वर्धमान सूरि ने भी आचार-दिनकर ग्रन्थ मे 'यथा उक्तमाग' लिखकर आगम से निम्न गाथा उद्धृत की है "मृतूण दिदिठवायं कालिय-उक्कालियगसिद्धत। थी-बाल-वायणस्थ पाइयमुइय जिणवरेंहिं ।' दृष्टिवाद को छोडकर शेष कालिक-उत्कालिक अग–सिद्धान्त-साहित्य का बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सब सरलता से वाचन एव अध्ययन कर सके, इसलिए तीर्थकरो ने श्रत-साहित्य का उपदेश प्राकृत भाषा मे दिया। १ पोराणमद्धमागह भासानियय हवइ सुत्त । -निशीथ चणि २ जाता-धर्मकथा, पृ० २८औपपातिक सूत्र, पृ० ५८ ३ सिद्ध हेम प्राकृत व्याकरण, ८, १, ३. सपकता पागता चेव दुहा भणितीओ आहिया। सरमडलम्मि गिज्जते पसत्था इसि-भासिता ॥ -स्थानांग सूत्र ७, ३९४. ५ प्रभावक चरित्र, श्लोक ११४-१६. । आचार दिनकर तत्त्व निर्णय प्रासाद, पृष्ठ ४१२.
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy