SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम-साहित्य एक अनुचिन्तन १० विद्यानुप्रवाद ११ अवन्ध्य १२ प्राणायु-प्रवाद सिद्धियो और उनके साधनो का निरूपण एक करोड दस लाख शुभाशुभ फल को अवश्य-सभाविता का छब्बीस करोड निरूपण इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, आयु और प्राण एक करोड का निरूपण शुभाशुभ क्रियाओ का निरूपण नव करोड लोक-विन्दुसार लब्धि का स्वरूप और विस्तार साढे बारह करोड १३ क्रिया-विशाल १४ लोक-बिन्दुसार भाषा आगम-साहित्य की भापा अर्ध-मागधी है, जिसे वर्तमान में प्राकृत कहते हैं। आगम-साहित्य में इस बात का स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि तीर्थकर अर्ध-मागधी भाषा मे उपदेश देते है। ' तीर्थकर अन्य भापा मे उपदेश न देकर अर्धमागधी या प्राकृत मे ही उपदेश क्यो देते ह? इसके समाधान में आचार्य हरिभद्र ने कहा है कि "चारित्र' की साधना-आराधना करने के इच्छुक मन्द बुद्धि स्त्री-पुरुपो पर अनुग्रह करने के लिए सर्वज्ञ भगवान् सिद्धात की प्ररूपणा या आगमो का उपदेश प्राकृत मे देते हैं।' भगवती सूत्र में गौतम स्वामी के एक प्रश्न-देव किस भाषा मे वोलते हे का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर ने कहा-हे गौतम | देव अर्धमागधी भाषा मे बोलते हैं और लोक में बोली जाने वाली भापाओ मे अर्धमागधी भाषा ही विशिष्ट एव श्रेष्ठ भापा है। प्रज्ञापना सूत्र में अर्धमागधी भाषा में बोलने वाले व्यक्तियो को भापा आर्य कहा है । ' इससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान् महावीर अर्ध १ भगव च ण अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइषखइ । -समवायाग सूत्र, पृष्ठ ६० तएण समणे भगव महावीरे कूणिमस्स रणो भिभिसार-पुत्तस्य .. .. अद्धमागहीए भासाए भासइ .... सावि य ण अद्धमागही भाषा तेसि सव्वेसि अप्पणो सभासाए परिणामेण परिणमइ । -औपपातिक सूत्र २ बाल-स्त्री-मन्द-मूर्खाणा, नृणा चारित्रकाक्षिणाम् । अनुग्रहार्थ सर्व सिद्धान्त प्राकृते कृतः ॥ -दशवकालिक टीका १ गोयमा ! देवाणं अद्धमागहीए भासाए भासंति, सावि यण अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी विसिस्सइ। -भगवती सूत्र, ५,४,२० • भामारिया जे ण अद्धमागहीए भासाए भासेति । -प्रज्ञापना सूत्र, पृ.५६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy