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गुरदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ आचार्य भद्रवाहु, आचार्य गीलाक और आचाराग-चूर्णिकार इस बात में एकमत है कि तीर्थकर भगवान् ने मर्व-प्रथम उपदेश भी आचाराग का दिया और गणघरो ने रचना भी सर्व-प्रथम इसकी की। अन्य अग और पूर्व आदि सव आचाराग के अनन्तर रचे गए है । परन्तु आवश्यक चूणि में इसके विपरीत मतो का उल्लेख भी मिलता है। कुछ विचारको का अभिमत है कि तीर्थकरो ने प्रथम अर्थ स्प से पूर्वो का उपदेश दिया, परन्तु गणधरी ने सूत्र रूप से सर्व-प्रथम आचाराग आदि अगो की रचना की । किन्तु कुछ आचार्यों का यह अभिमत है कि सर्व-प्रथम उपदेश भी पूर्वो का दिया गया और अन्य रचना भी पूर्वो की की गई । उपदेश एव रचना की दृष्टि से पहले पूर्व है, उसके वाद आचाराग आदि अन्य अग है, किन्तु स्थापना की दृष्टि से आचाराग को सर्वप्रथम स्थान दिया गया है । अत योजना की दृष्टि से आचाराग का प्रथम स्थान है, परन्तु रचना की अपेक्षा से पूर्वो का स्थान पहला है ।
आगमो मे श्रुत-साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की परपरा के तीन क्रम मिलते हैं। कुछ श्रमण चतुर्दश पूर्व के ज्ञाता होने ये या उससे कम पूर्वो के । कुछ श्रमण द्वादशागी के विद्वान होते थे । और कुछ थमण मामायिक आदि एकादश अगो का अध्ययन करते थे। इन सव मे चतुर्दश पूर्वधर श्रमणो का विशिष्ट महत्व रहा है । उन्हे श्रुत-केवली कहा गया है और पूर्वघर स्थविरो या आचार्यों के द्वारा रचित साहित्य को भी आगम कहा गया है और उनकी वाणी को भी वीतराग वाणी की तरह प्रामाणिक माना गया है।
चौदह पूर्व
नाम
१
उत्पाद
२ अग्रायणीय ३ वीर्य-प्रवाद ४ अस्ति-नास्ति-प्रवाद ५ ज्ञान-प्रवाद ६. सत्य-प्रवाद ७ आत्म-प्रवाद ८. कर्म-प्रवाद ६. प्रत्याख्यान-प्रवाद
विपय
पद-परिमाण द्रव्य और पर्यायो की उत्पत्ति एक करोड द्रव्य, पदार्थ और जीवो का परिमाण छियानवे लाख सकर्म और अकर्म जीवो के वीर्य का वर्णन सत्तर लाख पदार्थ की सत्ता और असत्ता का निरूपण साठ लाख जान का स्वरूप और प्रकार
एक कम एक करोड सत्य का निरूपण
एक करोड़ छह आत्मा-जीव का निरूपण
छब्बीस करोड कर्म का स्वरूप और प्रकार
एक करोड अस्सी लाख व्रत-आचार, विधि-निषेध
चौरासी नाख
. चाराग चूणि, पृष्ठ, ६. २ आवश्यक चूर्णि, पृष्ठ, ५६-५७.