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________________ उज्ज्वल-आत्मा की स्मृति श्री मोतीलाल चौरडिया, श्री साधुमार्गी जैन उद्योतिनी सभा, आगरा। आगरा निवासी श्री श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी समाज का यह परम सौभाग्य है कि हम सब मिलकर इस वर्ष आगरे मे परम-पूज्य, बालब्रह्मचारी, घोरतपस्वी, महातेजस्वी, परम-सन्तोषी, करुणा-निधि, दीन-बन्धु, श्रद्धेय आचार्य गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज का शताब्दी महोत्सव मना रहे है। यद्यपि उस महान्ज्योति को लुप्त हुए एक लम्बा काल बीत चुका है, तथापि उसके सद्गुणो की सुगन्ध एव ज्ञान का प्रकाश निरन्तर चहुँ ओर फैल रहा है। ससार मे मरना उसी का सार्थक है, जिसके चले जाने के बाद भी उसकी कीति अमर रहे। जिसकी अनुपस्थिति मे हमे उसकी आवश्यकता महसूस हो। हम उस महान-विभूति का स्मरण न केवल इसलिए करते है कि वह जैन समाज की साधु मप्रदाय के एक आचार्य थे । केवल इसलिए भी हम उन्हे याद नही करते कि वह भगवान् महावीर के अनुयायी थे, बल्कि हम मब उनको श्रद्धाञ्जलि इसलिए अर्पित करते हैं, इसलिए उनके प्रति नतमस्तक होते है कि वह दिव्य-मूर्ति जैन-धर्म के महान् सिद्धान्तो व नियमो की केवल उपदेशक ही नही-वरन् उनमे स्वय ढली हुई थी। उस महामानव ने अपने आपको अन्दर और बाहर एकसा बना लिया था । उनका जो चित्र उपलब्ध है उसको देखते ही आभास होता है कि वह सुन्दर-सुडौल, अविचल-अडोल, दृढ-प्रतिज्ञ, निडर व साहसी, परम सतोषी, स्पष्ट एव मृदु-भापी, पूर्ण ब्रह्मचारी, तपस्वी एव ज्ञान के भण्डार थे। हमारे और उस महान ज्योति के बीच एक गहरा नाता रहा हुआ है-यह कि "मैं हूँ पथिक, जैन-पथ का, तुम पथिको के आश्रयदाता । इस पथ पर कदम बढाया है, रख तुमसे एक यही नाता॥ साथ ही हम उपाध्याय कविरत्न श्री अमर चन्द जी महाराज के भी अति आभारी है, जिनकी प्रेरणा और सहयोग से इस महाग्रन्थ की रचना हो सकी है और अब तक के रचे महाग्रन्थो की लडी मे यह ग्रन्थ एक नई कडी बन गया है । इस महानन्थ का सम्पादन कवि जी महाराज के सुशिष्य श्री विजयमुनि जी म. ने अति परिश्रम से किया है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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