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श्री रत्न मुनिजी महाराज
२० हरिशंकर वर्मा कविरत्न मन्य अहिना-उत्त भूनन पर भाव भव्य उनगाता है, नेट अनैतिकता वामन म जीवन-ज्योति जगाना है।
न वत्र, कर्म किमी विष कोई कमी न पर-अपकार करे,
बिन प्रकार नन्नव हो, दीनों-दुन्नियो के नन्ताप हरे । सत्य-अहिंसा का पालन ही विश्व-शान्ति का साधन है, मानवता की मजु नि है, मुनि समाज-आराधक है। सत्य-महिमा तन्त्र भक्ति से जब जीवन में आएगा,
तब ही मानव 'मानवना का अधिकारी बन पाएगा। नहावीर स्वानी ने जग में प्रेम-पुण्य पान किया, मन-महिमा की विकृति का बमुत्रा पर विस्तार किया। पन्य-घन्य श्री ग्ल मुनिजी सन्य-अहिंसा मय जीवन
मृत्य धर्म के परिणलन में किया समर्पित निज तन-मन । नहाबीर बानी के सेवक माग गरिमा-गायक थे, ढीन, दुम्सी, अनितों के बाना, नाना, अम्बा, नहायक थे। बननी जन्ममृनि के मेवन भव्य नाव उन्नायक थे,
जनावरण के पावन-प्रेत उच्चान्यं विधायक थे। 'मानवता' मर्यादा ग्भक शान्नि-सुवा के बागर थे, नैतिन्ना नलिनी के नववि गौरव-नान उजागर थे। बिनयान कनय नहानुनि पुण्य-प्रेम-परिपालक थे,
शान्त, शुद्ध, सन्त्रान्त विवकी नन्य घयं मंचानक थे । निज हेय-मान्ना में अति सकट ले कष्ट नहे, पन्नतव्य-मार्ग पर दृढता में अविचल हो अड़े रहे। न्यग-तपस्या के गन्ग ही मुया-वजा फहगती है,
नक्ति नावना ने जनता नित श्रद्धा पुष्प चढाती है। आज अपनं पुण्य शती है पूजनीय वर वन्दन है,
घन्ट-धन्य की ग्न मुनि श्री श्रद्धा ने अभिनन्दन है।