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________________ जिन-शासन के प्रकाशपुञ्ज श्री सुमतकुमार जैन उपमन्त्री पौषधशाला गुरुदेव श्रद्धेय रत्लचन्द्र जी महाराज जिन-शासन के प्रकाश-पुञ्ज थे । वे अपने समय के एक महान् तेजस्वी सन्त थे । जैन धर्म जन्म से ही किसी को महान् नहीं मानता, उमकी महानता का माप दण्ड है, व्यक्ति का अपना ही शुभ कर्म । गुरुदेव अपनी कठोर तप साधना के बल पर ही महान् बने थे। उनकी ख्याति के अनेक सहज गुण होने पर भी, उनकी आचार-निष्ठा ही वस्तुत उनकी महानता की आधार-शिला थी। गुरुदेव पहली बार आगरा कब पधारे? हमारे पास इसका निश्चित प्रमाण न होने पर भी इतना तो निश्चित है कि आज की यह पौपध-शाला अथवा जैन भवन मन्दिर वनने की तैयारी मे था, परन्तु गुरुदेव के उपदेश से यह पौषध-शाला बना । इसी पोपघशाला मे गुरुदेव ने अनेक वर्षावास किए थे और अपने जीवन की अन्तिम सथारा साधना भी यही पर की थी। अतः आज के इस जन भवन को गुरूदेव की तपोभूमि और साधना भूमि होने का गौरव प्राप्त है। अन्त मे पुण्य शताब्दी के इस शुभ अवसर पर मैं गुरुदेव के श्री चरणो मे अपनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ। गुरुदेव के प्रति श्रद्धाञ्जलि लाला जगन्नाथ जी कोषाध्यक्ष गुरुदेव श्रद्धेय रत्नचन्द्र जी महाराज अपने युग के एक महान पुरुष थे। उनके विचारो मे गम्भीरता थी। उनकी वाणी मे ओज था, आचरण में प्रखरता और कठोरता थी। ज्ञान और क्रिया में उन्होंने समन्वय साधा था। यही कारण है, कि शताब्दी के इस शुभ अवसर पर अपनी हार्दिक श्रद्धा उनके श्री चरणो मे समर्पित करता हूँ। उनका उपदेश युग-युग तक हमे मार्ग दर्शन कराता रहेगा। ७६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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