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________________ तपोमय जीवन कमला जन प्रभाकर भारतीय संस्कृति मे तपोमय जीवन को श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। तप एक शक्ति है, जिससे प्रात्मा पावन और पवित्र बनता है। जैसे स्वर्ण आग मे तपकर निखर उठता है, वैसे ही आत्मा भी तप की आग मे तपकर उज्ज्वल हो उठता है । जीवन-शोधन के लिए तप से बढकर अन्य कोई धर्म नहीं हो सकता। श्रद्धेय रत्नचन्द्र जी महाराज का जीवन एक तपोमय जीवन था । दीक्षा ग्रहण करते ही उन्होने तप की साधना प्रारम्भ करदी थी। जीवन में अनेक प्रकार के कठोर तप करके उन्होने जो जीवन-ज्योति प्राप्त की थी, उसकी महिमा अपार है। तप और सयम की कठोर साधना से उन्होंने अपनी आत्मा को भावित किया था, पावन किया था, पवित्र किया था। तप और सयम की साधना के साथ-साथ ज्ञान की आराधना भी उन्होने की थी। तभी तो उनका जीवन समाज के आकाश मे सूर्य बनकर चमका था, दमका था। वस्तुत तप और ज्ञान भारतीय संस्कृति के प्राण-तत्व कहे जाते है। मै उस तपोमय और ज्ञानमय जीवन के प्रति अपनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करती हूँ। श्रद्धाञ्जलि लाला रामगोपाल जी अध्यक्ष, जैन संघ लोहामडी आगरा का एस० एस० जैन सघ महान् भाग्यशाली है कि उसे श्रद्धेय गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज की पुण्य शताब्दी मनाने का सुयोग्य अवसर प्राप्त हुआ है । हमारे वै पूर्वज कितने सौभाग्यवान थे, जिन्होंने उनके साक्षात् दर्शन किए, उपदेश सुना और उनका सान्निध्य प्राप्त किया। आज से सौ साल बाद में आने वाली हमारी भावी सन्तान भी हमे उसी प्रकार सौभाग्यशाली समझेगी कि हमने गुरुदेव की प्रथम पुण्य शताब्दी मनाने का सौभाग्य प्राप्त किया। गुरुदेव तप, त्याग और सयम की दृष्टि से महान् थे । ज्ञान और क्रिया दोनो का उन्होने अपने जीवन मे सुन्दर समन्वय किया था। उनके इस महान् आदर्श को हमे ग्रहण करना चाहिए। आज हम सबको संगठित होकर इस पुण्य शताब्दी को उत्साह के साथ मनाना चाहिए।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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