________________
अध्यात्म-पुरुष
देवबाला जैन एम० ए०, बी० टी०
अध्यात्म-जीवन के तीन प्रग है-अनासक्ति, सयम और त्याग । जो साधक उक्त तीन धर्मों की साधना मनसा, वाचा, और कायेन करता है, उनको हम अध्यात्म-पुरुष कहते है। अध्यात्म-पुरुष समाज और राष्ट्र के लिए एक महान् आदर्श और प्रेरणा-स्रोत सिद्ध होते है।
श्रद्धेय रत्नचन्द्र जी महाराज अपने युग के एक ऐसे ही अद्भुत अध्यात्म-योगी सन्त थे, जिनकी अध्यात्म-साधना से उस युग के समाज में एक जीवन-ज्योति जगी थी। श्रद्धेय रत्नचन्द्र जी महाराज साधुमार्गी स्थानकवासी जैन समाज के एक तपस्वी, प्रतिभाशाली और युग-पुरुष थे। वे अपने युग के धुरन्धर विद्वान, और परम विचारक सन्त थे ।
महाराज श्री के विषय मे जो कुछ स्मृतियाँ परम्परागत शेष है, वे उनकी महानता की परिचायक है। इस पुण्य-शताब्दी के अवसर पर उस महापुरुष की पुण्य-स्मृति का जागरण निश्चय ही समाज के कल्याण और मगल के लिए है। उस महापुरुप का पुण्यपर्व जन-मानस को पावन करेगा।
श्रद्धेय रत्नचन्द्र जी महाराज के दिव्य-जीवन का दिव्य-सन्देश जन-जन के जीवन को सुवासित करे, यही मेरी अभिलाषा है। इस पुण्य शताब्दी के शुभ अवसर पर मैं उस अध्यात्म-योगी के प्रति अपनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करती हूँ और उनके गुणो का आदर करती हूँ।