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विवेक और वैराग्य के
शाश्वत सरोवर
पण्डित श्री ज्ञानमुनि जी
विवेक और वैराग्य के शाश्वत सरोवर परम श्रद्धेय श्री रत्नचन्द्र जी महाराज जैन जगत् के एक मनोनीत और विश्रुत विद्वान मुनिराज हो गए है। आप का मगलमय-जीवन-अहिंमा और सत्य, जप और तप, दया और करुणा, सयम और साधना तथा उदारता और सहिष्णुता का एक आदर्श भण्डार था। आपका पवित्र जीवन एक प्रकाश-स्तम्भ के समान था, जो सयम पथ के पथिक साधको को सदा सन्मार्ग दिखलाता रहता था। सयम-भूमि पर गति-शील साधक श्रमणो को अपने गन्तव्य स्थान तक पहुंचाने के लिए उपस्थित होने वाली विघ्न-बाधाओ से सतर्क तथा सावधान रहने की मधुर प्रेरणा प्रदान करता रहता था । वे एक प्रकार से अपने उस युग के महान् ज्योति पुञ्ज थे, मार्ग-दर्शक थे।
एक दिन आपको अन्तरात्मा बोल उठी-"क्या भरोसा है, जीवन का प्रभात के तारा की तरह यह तो क्षण-भगुर है । मनुष्य कितना पागल है, जो आशाओ के महल खडे करता है, उनके पीछे लगकर अपना आपा भी भूल बैठता है।" अन्तर से आवाज उठी
"चे तो रे, भव प्राणियां ! यह ससार असार । स्थिरता कुछ दोसे नही धन, जीवन परिवार ॥
हमारे चरित्र-नायक ने गुरु-चरणो में पहुंचकर दीक्षा ग्रहण की और ज्ञान को ऊंची माधना की । सयम को साधना, ज्ञान की आराधना और जिजामा-शील सज्जनो को जिज्ञासा का समाधान ये ही उनके तीन महान कार्य थे।