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गुरुदेव युग-पुरुष थे
तपस्वी श्री श्रीचंद्र जी
गुरुदेव श्री रत्नचन्द्रजी महाराज आज से एक शताब्दी पूर्व के युग-पुरुष थे । उनका विचारसमन्वित आचार और आचार-समन्वित विचार, उस युग की जन-श्रद्धा का केन्द्र-बिन्दु बन गया था। चारो ओर उनकी विद्वता की धाक थी और उनके उज्जवल चारित्र का समादर था । उस युग की जनता उन्हे अपना मार्ग-दर्गक मानती थी।
उस युग-पुरुप ने अहता और ममता के प्रगाढ़ बन्धनो को तोडा । त्याग, तपस्या और वैराग्य की अमर-ज्योति प्रज्वलित की । मिथ्या विश्वाम, मिथ्या विचार, मिथ्या आचार और मिथ्या क्रिया काण्डो का खण्डन करके जन-जीवन को पावन और पवित्र बनाया था। ज्ञान का आलोक फैलाकर सर्वत्र जन जीवन को तेजस्वी बनाकर चमकाया।
गुरदेव मे एक अद्भुत आकर्षण-शक्ति थी । जो भी एक बार उनके सन्निध्य मे आया, वह सदा के लिए उनका परम भक्त बन गया । उनकी व्यापक दृष्टि में अपना, अपना नही और पराया, पराया नहीं। वसुधा उनके लिए एक विशाल कुटुम्ब बन गई थी। उस रत्नज्योति पर राग-वेप के झंभा बातो का कुछ भी प्रभाव नही पढता था। गीता की भाषा मे वे स्थित-प्रज्ञ थे । जो पाया, सबको बॉट दिया, फिर भी मन में किसी प्रकार का अहकार नही था । उनका जीवन एक महासागर है । उसमे जितनी गहराई से गोता लगाया जाएगा, उतने ही अधिक रल उसमे से प्राप्त किए जा सकेंगे।
उस परम पावन जीवन के प्रति में अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि समर्पित करके अपने को धन्य समझता हूँ।