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चमकता सूरज दमकता जीवन
पडित हेममुनि जी
भारतीय-संस्कृति के पुरातन पृष्ठो के अध्ययन से यह ज्ञात होता है, कि सस्कृति मे विकृति आने पर, धर्म का ह्रास होने पर और पापाचार के बढने पर, विश्व मे किसी महान् शक्ति का अवतार होता है वह शक्ति जन कल्याण और जन-मगल के लिए प्रकट होती । उस शक्ति को जनता युग-पुरुष कहती है । उन्ही युग पुरुष एव महापुरुषो की उत्तम श्रेणी में सन्त रत्न, परम पुरुष, श्रद्धेय पूज्य प्रवर श्री रत्नचन्द्र जी महाराज का नाम भी अग्रगण्य रूप मे लिया जा सकता है।
भारत के अध्यात्मवादी मनीषी कहते है-"वशर ने दुनिया को खोजा, तो कुछ न पाया । खुद को खोजा, तो बहुत कुछ क्या? सभी कुछ पा लिया गया। खुद को खोजने की खुद को पहचान ने की बात भी लीजिए एक उर्दू का शायर कहता है, कि
"पहचान ले अपने को तो इन्सान खुदा है।
गो जाहिर मे है खाक मगर खाक नही है ॥" देखने मे तो बेशक इन्सान खाक का पुतला नजर आता है, मगर जो अन्दर की आँख से देखते और परखते है, उन्हे तो इस ककर मे भी शकर छुपा हुआ नजर आता है।
सूर्य स्वय प्रकाशित है, तभी तो वह दूसरो को प्रकाश देता है । फूल मे स्वय गन्ध है, तभी तो वह सबको सुरभि प्रदान करता है । इसी प्रकार सन्त पुरुप स्वय प्रकाश-शील होते है, स्वय सुरभित होते है, तभी तो वे दूसरो को ज्ञान का प्रकाश और सयम की सुरभि प्रदान करते है। गुरुदेव ने स्वय अहिसा की ऊँची साधना की, तभी तो उन्होने ससार को शान्ति और समता का उपदेश और आदेश दिया, प्रेम का पाठ पढाया।
गुरुदेव की वाणी मे जादू था । वे जिधर भी निकल गए, जनता उनकी तप पूत अमृत-वाणी से परितृप्त होती चली गई । जनता ने उन्हे श्रद्धा, भक्ति और सेवा समर्पित की, क्यो कि उन्होने जनता को कल्याण का और उद्धार का मार्ग बताया था। उनके जीवन का सुन्दर सिद्धान्त था
"परोपकाराय सता विभूतय ।'