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जप और तप की साधना
मुनि श्री कस्तूरचन्द्र जी
मैं उस परम पवित्र आत्मा के चरणो मे अपनी श्रद्धा के सुरभित मुमन समर्पित करता हूँ, जिसने अपने ज्ञान के प्रकाश से जीवन और जगत् को ज्योतिर्मय बनाया था। जब उम दिव्य आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धा का कल-कल करता निझर पूरे वेग से प्रवाहित होता है, तव विकट से विकट और भारी से भारी वाधा की चट्टान भी उसे अवरुद्ध नही कर सकती ।
ससार मे सही राह और दिशा की कमी नहीं, पर मिलती है, वह खोजने वाले को । गुरुदेव को वह मही राह मिली, जिस पर स्वय चलकर, दूसरो को भी उस पर चलाने के प्रयत्न मे वे पूर्णत. सफल हुए थे। क्योकि सत्य की प्राप्ति की प्रवल भावना रखने वाले को एक दिन सत्य की उपलब्धि हो ही जाती है । सत्य को उन्होने खोजा और सत्य उन्हें मिला।
गुरदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज ने अपने जीवन मे जान के साथ ध्यान की और जप के साथ तप की साधना की । उन्होने आत्म-रूपी वस्त्र पर से जप और तप के द्वारा अशुभ सस्कारो की धूलि को साफ कर दिया।
सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धान्त के वे साकार रूपये । उस कृशकाय पुरुप मे वह महान् दिव्य प्रकाश था, जिसके द्वारा हजारो भटकती हुई जिन्दगियो को जीवन का वह अनोखा प्रकाश मिला, जिस प्रकाश के द्वारा उन्होने अपने वास्तविक लक्ष्य को पहिचाना । उनका जीवन जप और तप के सौरभ से सुरभित था।
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