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________________ (१०९) अनेकाहलतिष्ठान्तप्रतिष्ठैः केल्हणादिभिः । सद्यः सूक्तानुरागेण पठित्वाऽयं प्रचारितः ॥१८॥ अलमातप्रसङ्गेनयावत्रिलोक्यां जिनमन्दिरार्चाः तिष्ठन्ति शक्रादिभिरर्यमानाः । तावज्जिनादिप्रतिमाप्रतिष्ठा शिवार्थिनोऽनेन विधापयन्तु ॥१९॥ नन्याखाण्डिल्यवंशोत्थः केल्हणो न्यासवित्तरः । लिखितं येन पाठार्थमस्य प्रथमपुस्तकम् ॥ २० ॥ इत्याशाधर विरचितो निनयज्ञकल्पः। भावार्थ-प्राचीन प्रतिष्ठापाठोंको वर्जित करके और इंद्रसम्बन्धी व्यवहारको देखकर यह वर्तमान युगके अनुकूल ग्रंथ बनाया, जो कि आम्नायविच्छेदरूपी अंधकारको नाश करनेवाला है। खंडेलवाल वंशके भूषणरूप अल्हणके पुत्र, श्रावकधर्ममें लवलीन रहनेवाले, नलकच्छपुरनिवासी, परोपकारी, देवपूजा, पात्रदान तथा निनशासनका उद्योत करनेवाले और प्रतिष्ठाग्रणी पापासाधुने वारंवार अनुरोध करके यह ग्रंथ बनवाया । आसोज सुदी १५ वि० सं० १२८५ के दिन परमारकुलके मुकुट देवपाल उर्फ साहसमल्ल राजाके राज्यमें नलकच्छपुर नगरके नेमिनाथ चैत्यालयमें यह ग्रंथ समाप्त हुआ। अनेक जिनप्रतिष्ठाओमें प्रतिष्ठा पाये हुए केल्हण आदि विद्वानोंने नवीन सूक्तियोंके अनुरागसे इस ग्रन्थका प्रचार किया। जबतक तीन लोकमें जिनमंदिरोंकी पूजा इंद्रादिकोंके द्वारा होती है, तब तक कल्याणकी इच्छा करनेवाले इस अन्यसे निनप्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा करावें । खंडेलवालवंशमें उत्पन्न
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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