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ॐ नमः सिद्धेभ्यो ॐ नमोऽनेकान्तवादिने जिनाय .: *पीठिका ।
मंगलाचरण-षट्पद। . . [ नोंध:-यह छह पंक्तियां (षट्पद) पं. हेमराजजी कृत हैं। ] सिद्धि सदन बुद्धिवदन, मदनमद कदन दहन रज । लब्धि लसन्त अनन्त, चारु गुनवंत सन्त अज ॥ दुविधि धरमविधि कथन, अविधि-तम-मथन-दिवाकर । विघ्नः निघ्नकरतार, सकल-सुख-उदय-सुधाधर ॥ .
-मंगलाचरणपूर्वक कविवरका प्रारम्भशतइन्द्रवृन्दपदवंद भव, दन्द फन्द निःकन्द कर । अरि शोष-मोक्षमग-पोष निर-दोष जयति जिनराज वर ॥ १॥
- दोहा। .. . सिद्ध शिरोमनि सिद्धपद, शुद्धचिदातम भूप । . . . ज्ञानानंद सुभावमय, वंदन करहुं अनूप ॥२॥
* अय श्री. प्रक्वनसारपरमागम अध्यात्मविद्या श्रीमत्कुमकुन्दाचार्यकृत
मूल गाथा ताकी संस्कृत टोका श्री अमृतचन्द्राचार्य की है ताकी देशवचनिका पांडे . हेमराजनीने रची है। ताहीके अनुसारसों वृन्दावन छन्द लिखे है. (प्रथम प्रति)। ........